नबाब
सहादत अली के समय जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध: अमेठी के राजा गुरुदत्त
सिंह और पिपरपुर के राजकुमार सिंह के नेतृत्व मे बाबरी ढांचे पर पुनः पाच आक्रमण
किया गया और जन्मभूमिपर अधिकार हो गया । यह युद्ध सुल्तानपुर गजेटियर के आधार पर
1763 ईसवी मे हुआ था। मगर हर बार की तरह
मुह की खाने के बाद अपेक्षाकृत ज्यादा बड़ी और संगठित शाही सेना जन्मभूमि को अपने
अधिकार मे ले लेती थी। मगर इसके बाद भी आस पास के हिंदुओं ने अगले कई सालो तक
जन्मभूमि के रक्षार्थ युद्ध जारी रखा । इस
रोज रोज के आक्रमण से जन्मभूमि पर कब्जा बनाए रखने के लिए मुगल सेना की काफी क्षति
हो रही थी और इसका बाबर की तरह नबाब सहादत ली ने भी हिंदुओं और मुसलमानो को एक ही
स्थान पर इबादत और पुजा की छूट दे दी । तब जा के कुछ हद तक उसने नुकसान पर काबू
पाया
लखनऊ गजेटियर मे कर्नल हंट लिखता है की
“ लगातार हिंदुओं के हमले से ऊबकर नबाब ने हिंदुओं और
मुसलमानो को एक साथ नमाज पढ़ने और भजन करने की इजाजज्त दे दी ,तब जा के
झगड़ा शांत हुआ ।नबाब सहादत अली के लखनऊ की मसनद पर बैठने से लेकर पाँच वर्ष तक
लगातार हिंदुओं के बाबरी मस्जिद पर दखलयाबो हासिल करने के लिए पाँच हमले हुए।
“लखनऊ गजेटियर पृष्ठ 62”
नासिरुद्दीन हैदर
के समय मे तीन आक्रमण :मकरही के राजा के नेतृत्व में जन्मभूमि को पुनः अपने
रूप मे लाने के लिए हिंदुओं के तीन आक्रमण हुये । तीसरे आक्रमण मे हिन्दू संगठित
थे अबकी बार डटकर नबाबी सेना का सामना हुआ 8वें दिन हिंदुओं की शक्ति क्षीण होने
लगी,जन्मभूमि
के मैदान मे हिन्दू और मुसलमानो की लाशों का ढेर लग गया । शाही सेना के सैनिक अधिक
संख्या मे मारे गये। इस संग्राम मे भीती,हंसवर,,मकरही,खजुरहट,दीयरा अमेठी के
राजा गुरुदत्त सिंह आदि सम्मलित थे। शाही सेना इन्हे पछाड़ती हुई हनुमानगढ़ी
तक ले गयी। यहाँ चिमटाधारी साधुओं की सेना हिंदुओं से आ मिली और। इस युद्ध
मे शाही सेना के चिथड़े उड गये और उसे
रौंदते हुए हिंदुओं ने जन्मभूमि पर कब्जा कर लिया। मगर हर बार की तरह कुछ दिनो के
बाद बड़ी शाही सेना ने पुनः जन्मभूमि पर अधिकार कर लिया।
पियर्सन बहराइच गजेटियर मे लिखता है
“जन्मभूमि पर अधिकार करने के लिए नवाब नसीरुद्दीन हैदर के
समय मे मकरही के ताल्लुकेदार के साथ हिंदुओं की एक जबरदस्त भीड़ ने तीन बार हमला किया।
आखिरी हमले मे शाही सेना के पाँव उखड़ गए और वह मैदान से भाग खड़ी हुई । किन्तु
तीसरे दिन आने वाली जबरदस्त शाही हुक्म से लड़कर हिन्दू बुरी तरह हार गये और उनके
हाथ से जन्मभूमि निकल गयी । “बहराइच गजेटियर पृष्ठ 73”
नबाब वाजीद अली के समय दो आक्रमण: नाबाब वाजीद आली शाह के
समय के समय मे पुनः हिंदुओं ने जन्मभूमि के उद्धारार्थ आक्रमण किया । फैजाबाद
गजेटियर मे कनिंघम के अनुसार इसबार शाही सेना किनारे थी और हिंदुओं और धर्मांतरित
कराये गए हिंदुओं(नए नए बने मुसलमानो) को आपस मे लड़ कर निपटारा करने की छूट दे दी गयी
थी। इस संग्राम मे बहुत ही भयंकर खूनखराबा हुआ ।दो दिन और रात होने वाले इस भयंकर
युद्ध मे मुसलमान बुरी तरह पराजित हुए। फैजाबाद गजेटियर के अनुसार क्रुद्ध हिंदुओं
की भीड़ ने उनके मकान तोड़ डाले कबरे तोड़ फोड़ कर बर्बाद कर डाली मस्जिदों को मिसमर
करने लगे यहाँ तक की हिंदुओं ने मुर्गियों तक को जिंदा नहीं छोड़ा मगर हिन्दू भीड़
ने मुसलमान स्त्रियॉं और बच्चों को कोई हानि नहीं पहुचाई। मगर चूकी अब अङ्ग्रेज़ी
प्रभाव हिंदुस्थान मे था अतः शाही सेना शुरू मे चुप थी अयोध्या मे प्रलय मचा हुआ
था मुसलमान अयोध्या छोड़कर अपनी जान ले कर भाग निकले थे ।,इतिहासकार
कनिंघम लिखता है की ये अयोध्या का सबसे
बड़ा हिन्दू मुस्लिम बलवा था। मुसलमानो की अत्यंत दुर्दशा और हार देखते हुए
शाही सेना ने हस्तक्षेप किया जिसमे अब ज्यादा अंग्रेज़ थे। सारे शहर मे कर्फ़्यू
आर्डर कर दिया गया । उस समय अयोध्या के राजा मानसिंह और टिकैतराय ने नाबाब वाजीद आली शाह से कहकर
हिंदुओं को फिर चबूतरा वापस दिलवाया । हिंदुओं ने अपना सपना पूरा किया और औरंगजेब
द्वारा विध्वंस किए गए चबूतरे को फिर वापस बनाया । चबूतरे पर तीन फीट ऊँची खस की
टाट से एक छोटा सा मंदिर बनवा लिया ॥जिसमे पुनः रामलला की स्थापना की गयी।
कुछ जेहादी मुल्लाओं को ये बात स्वीकार नहीं हुई उन्होने
नबाब से जाके इस बात की शिकायत की नाबाबों ने एक बार हिंदुओं का क्रोध और राजनीतिक
स्थिति देखते हुए हस कर एक कूटनीतिक उत्तर दिया की
हम इश्क के बंदे हैं मजहब से नहीं वाकिफ। गर काबा हुआ तो
क्या?बुतखाना
हुआ तो क्या??
नबाब के इस कूटनीति को अंग्रेज़ो का भी साथ मिला । मगर नबाब के इस निर्णय से जेहाद के लिए प्रतिबद्ध मौलवी आली आमिर सहमत नहीं हुआ ॥
नबाब के इस कूटनीति को अंग्रेज़ो का भी साथ मिला । मगर नबाब के इस निर्णय से जेहाद के लिए प्रतिबद्ध मौलवी आली आमिर सहमत नहीं हुआ ॥
मौलवी अली आमिर द्वारा जेहाद: नबाब के उक्त निर्णय पर
अमेठी राज्य के पीर मौलवी अमीर अली ने जेहाद करने के लिए मुसलमानो को संगठित किया
और जन्मभूमि पर आक्रमण करने के लिए कुछ किया। रास्ते मे भीती के राजकुमार जयदत्त
सिंह से रौनाही के पास उसे रोककर घोर संग्राम किया और उसकी जेहादी सेना समेत उसे
समाप्त कर दिया।
मदीतुल औलिया मे लिखा है की
“मौलवी साहब ने जुमे की नमाज पढ़ी।तकरीबन 170 आदमी जेहाद मे
लेकर रवाना हुए । सन 1721 हिजरी 1772 हिजरी बकायदा मोकिद हुआ जेहाद का नाम सुनकर
सैकड़ो मुसलमान शरीर जेहाद हुए। तकरीबन दो हजार की जमात रही होगी रौनही के पास जंग
करते हुए शहीद हुए” मदीतुल औलिया पृष्ठ 55
लेख के अगले अगले अंक मे पढ़िये किस प्रकार हिंदुस्थान के मुसलमानो
ने स्वयं आगे आ के रामजन्मभूमि पर पुनः मंदिर
बनवाने का प्रयास किया
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