श्री रामजन्मभूमि का ईसापूर्व इतिहास..
त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्र जी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट,सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है ॥धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है ॥
त्रेता युग के चतुर्थ चरण में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी अयोध्या की इस पावन भूमि पर अवतरित हुए थे। श्री राम चन्द्र जी के जन्म के समय यह स्थान बहुत ही विराट,सुवर्ण एवं सभी प्रकार की सुख सुविधाओ से संपन्न एक राजमहल के रूप में था। महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण मे जन्मभूमि की शोभा एवं महत्ता की तुलना दूसरे इंद्रलोक से की है ॥धन धान्य रत्नो से भरी हुई अयोध्या नगरी की अतुलनीय छटा एवं गगनचुम्बी इमारतो के अयोध्या नगरी में होने का वर्णन भी वाल्मीकि रामायण में मिलता है ॥
भगवान के श्री राम के स्वर्ग गमन के पश्चात अयोध्या तो पहले जैसी नहीं
रही मगर जन्मभूमि सुरक्षित रही। भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने एक बार पुनः
राजधानी अयोध्या का पुनर्निर्माण कराया और सूर्यवंश की अगली 44
पीढ़ियों तक इसकी अस्तित्व आखिरी राजा महाराजा वृहद्व्ल तक अपने चरम
पर रहा॥ कौशालराज वृहद्वल की मृत्यु महाभारत युद्ध में
अभिमन्यु के हाथो हुई । महाभारत के युद्ध
के बाद अयोध्या उजड़ सी गयी मगर श्री रामजन्मभूमि का अस्तित्व प्रभुकृपा से बना
रहा ॥
महाराजा विक्रमादित्य द्वारा पुनर्निर्माण:
ईसा के लगभग १०० वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य आखेट करते करते अयोध्या चले आये। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी के किनारे एक आम के बृक्ष के नीचे वो आराम करने लगे। उसी समय दैवीय प्रेरणा से तीर्थराज प्रयाग से उनकी मुलाकात हुई और तीर्थराज प्रयाग ने सम्राट विक्रमादित्य को अयोध्या और सरयू की महत्ता के बारे में बताया और उस समय तक नष्ट सी हो गयी श्री राम जन्मभूमि के उद्धार के लिए कहा॥
महाराजा विक्रमादित्य ने कहा की महाराज अयोध्या तो उजड़ गयी है,मिटटी के टीले और स्तूप ही यहाँ अवशेषों के रूप में हैं, फिर मुझे ज्ञान कैसे होगा की अयोध्या नगरी कहा से शुरू होती है,क्षेत्रफल कितना होगा और किस स्थान पर कौन सा तीर्थ है ॥
इस संशय का निवारण करते हुए तीर्थराज प्रयाग ने कहा की यहाँ से आधे
योजन की दूरी पर मणिपर्वत है,उसके ठीक दक्षिण
चौथाई योजन के अर्धभाग में गवाक्ष कुण्ड है उस गवाक्ष कुण्ड से पश्चिम तट से
सटा हुआ एक रामनामी बृक्ष
है,यह वृक्ष अयोध्या की परिधि नापने के लिए ब्रम्हा जी ने
लगाया था। सैकड़ो वर्षों से यह वृक्ष
उपस्थित है वहा। उसी वृक्ष के पश्चिम ठीक
एक मिल की दूरी पर एक मणिपर्वत है। मणिपर्वत के पश्चिम सटा हुआ गणेशकुण्ड
नाम का एक सरोवर है,उसके ऊपर शेष भगवान का एक मंदिर बना हुआ है (ज्ञातव्य है की अब इस स्थान पर अयोध्या में शीश पैगम्बर नाम की एक
मस्जिद है जिसे सन १६७५ में औरंगजेब ने शेष भगवान के मंदिर को गिरा कर बनवाया था ). शेष भगवान के मंदिर
से ५०० धनुष पर ठीक वायव्य कोण पर भगवान श्री राम की जन्मभूमि है॥ महाराजा विक्रमादित्य द्वारा पुनर्निर्माण:
ईसा के लगभग १०० वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य आखेट करते करते अयोध्या चले आये। थकान होने के कारण अयोध्या में सरयू नदी के किनारे एक आम के बृक्ष के नीचे वो आराम करने लगे। उसी समय दैवीय प्रेरणा से तीर्थराज प्रयाग से उनकी मुलाकात हुई और तीर्थराज प्रयाग ने सम्राट विक्रमादित्य को अयोध्या और सरयू की महत्ता के बारे में बताया और उस समय तक नष्ट सी हो गयी श्री राम जन्मभूमि के उद्धार के लिए कहा॥
महाराजा विक्रमादित्य ने कहा की महाराज अयोध्या तो उजड़ गयी है,मिटटी के टीले और स्तूप ही यहाँ अवशेषों के रूप में हैं, फिर मुझे ज्ञान कैसे होगा की अयोध्या नगरी कहा से शुरू होती है,क्षेत्रफल कितना होगा और किस स्थान पर कौन सा तीर्थ है ॥
रामनामी वृक्ष(यह वृक्ष अब सूखकर गिर चुका है) के एक मील के इर्द गिर्द एक नवप्रसूता गाय को ले कर घुमाओ जिस जगह वह गाय गोबर कर दे,वह स्थल मणिपर्वत है फिर वहा से ५०० धनुष नापकर उसी ओर गाय को ले जा के घुमाओ जहाँ उसके स्तनों से दूध की धारा गिरने लगे बस समझ लेना भगवान की जन्मभूमि वही है रामजन्मभूमि को सन्दर्भ मान के पुरानो में वर्णित क्रम के अनुसार तुम्हे समस्त तीर्थो का पता लग जायेगा,ऐसा करने से तुम श्री राम की कृपा के अधिकारी बनोगे यह कहकर तीर्थराज प्रयाग अदृश्य हो गए॥
रामनवमी के दिन पूर्ववर्णित क्रम में सम्राट विक्रमादित्य ने सर्वत्र नवप्रसूता गाय को घुमाया जन्म भूमि पर उसके स्तनों से अपने आप दूध गिरने लगा उस स्थान पर महाराजा विक्रमादित्य ने श्री राम जन्मभूमि के भव्य मंदिर का निर्माण करा दिया॥
ईसा की ग्यारहवी शताब्दी में कन्नोज नरेश जयचंद आया तो उसने मंदिर पर सम्राट विक्रमादित्य के प्रशस्ति को उखाड़कर अपना नाम लिखवा दिया। पानीपत के युद्ध के बाद जयचंद का भी अंत हो गया फिर भारतवर्ष पर लुटेरे मुसलमानों का आक्रमण शुरू हो गया। मुसलमान आक्रमणकारियों ने जी भर के जन्मभूमि को लूटा और पुजारियों की हत्या भी कर दी,मगर मंदिर से मुर्तिया हटाने और मंदिर को तोड़ने में वे सफल न हो सके॥ विभिन्न आक्रमणों के बाद भी सभी झंझावतो को झेलते हुए श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या १४वीं शताब्दी तक बची रही॥ चौदहवी शताब्दी में हिन्दुस्थान पर मुगलों का अधिकार हो गया और उसके बाद ही रामजन्मभूमि एवं अयोध्या को पूर्णरूपेण इस्लामिक साँचे मे ढालने एवं सनातन धर्म के प्रतीक स्तंभो को जबरिया इस्लामिक ढांचे मे बदलने के कुत्सित प्रयास शुरू हो गए॥
बाबर के आक्रमण के बाद अयोध्या में मस्जिद निर्माण कैसे हुआ,इस्लामिक आतताइयों ने कैसे अयोध्या का स्वरूप बदलने की कोशिश की और उसके बाद कई सौ सालो तक जन्मभूमि को मुक्त करने के लिए हिन्दुओं द्वारा किये गए युद्धों एवं बलिदानों एवं उन वीरों का वर्णन अगली पोस्ट में॥
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