Tuesday, December 10, 2013

शक्कर-नमकः कितने खतरनाक !

वैज्ञानिक तकनीक के विकास के पूर्व कहीं भी शक्कर खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त नहीं की जाती थी। मीठे फलों अथवा शर्करायुक्त पदार्थों की शर्करा कम-से-कम रूपान्तरित कर उपयुक्त मात्रा में प्रयुक्त की जाती थी। इसी कारण पुराने लोग दीर्घजीवी तथा जीवन के अंतिम क्षणों तक कार्यसक्षम बने रहते थे।

आजकल लोगों में भ्रांति बैठ गई है कि सफेद चीनी खाना सभ्य लोगों की निशानी है तथा गुड़, शीरा आदि सस्ते शर्करायुक्त खाद्य पदार्थ गरीबों के लिए हैं। यही कारण है कि अधिकांशतः उच्च या मध्यम वर्ग के लोगों में ही मधुमेह रोग पाया जाता है।
श्वेत चीनी शरीर को कोई पोषक तत्त्व नहीं देती अपितु उसके पाचन के लिए शरीर को शक्ति खर्चनी पड़ती है और बदले में शक्ति का भण्डार शून्य होता है। उलटे वह शरीर के तत्वों का शोषण करके महत्व के तत्वों का नाश करती है। सफेद चीनी इन्स्युलिन बनाने वाली ग्रंथि पर ऐसा प्रभाव डालती है कि उसमें से इन्स्युलिन बनाने की शक्ति नष्ट हो जाती है। फलस्वरूप मधुप्रमेह जैसे रोग होते हैं।
शरीर में ऊर्जा के लिए कार्बोहाइड्रेटस में शर्करा का योगदान प्रमुख है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि परिष्कृत शक्कर का ही उपयोग करें। शक्कर एक धीमा एवं श्वेत विष (Slow and White Poison) है जो लोग गुड़ छोड़कर शक्कर खा रहे हैं उनके स्वास्थ्य में भी निरन्तर गिरावट आई है ऐसी एक सर्वेक्षण रिपोर्ट है।
ब्रिटेन के प्रोफेसर ज्होन युडकीन चीनी को श्वेत विष कहते हैं। उन्होंने सिद्ध किया है कि शारीरिक दृष्टि से चीनी की कोई आवश्यकता नहीं है। मनुष्य जितना दूध, फल, अनाज और शाकभाजी उपयोग में लेता है उससे शरीर को जितनी चाहिए उतनी शक्कर मिल जाती है। बहुत से लोग ऐसा मानते हैं कि चीनी से त्वरित शक्ति मिलती है परन्तु यह बात बिल्कुल भ्रमजनित मान्यता है, वास्तविकता से बहुत दूर है।
चीनी में मात्र मिठास है और विटामिन की दृष्टि से यह मात्र कचरा ही है। चीनी खाने से रक्त में कोलेस्टरोल बढ़ जाता है जिसके कारण रक्तवाहिनियों की दीवारें मोटी हो जाती हैं। इस कारण से रक्तदबाव तथा हृदय रोग की शिकायत उठ खड़ी होती है। एक जापानी डॉक्टर ने 20 देशों से खोजकर यह बताया था कि दक्षिणी अफ्रीका में हब्शी लोगों में एवं मासाई और सुम्बरू जाति के लोगों में हृदयरोग का नामोनिशान भी नहीं, कारण कि वे लोग चीनी बिल्कुल नहीं खाते।
अत्यधिक चीनी खाने से हाईपोग्लुकेमिया नामक रोग होता है जिसके कारण दुर्बलता लगती है, झूठी भूख लगती है, काँपकर रोगी कभी बेहोश हो जाता है। चीनी के पचते समय एसिड उत्पन्न होता है जिसके कारण पेट और छोटी अँतड़ी में एक प्रकार की जलन होती है। कूटे हुए पदार्थ बीस प्रतिशत अधिक एसिडिटी करते हैं। चीनी खानेवाले बालक के दाँत में एसिड और बेक्टेरिया उत्पन्न होकर दाँतों को हानि पहुँचाते हैं। चमड़ी के रोग भी चीनी के कारण ही होते हैं। अमेरिका के डॉ. हेनिंग्ट ने शोध की है कि चॉकलेट में निहित टायरामीन नामक पदार्थ सिरदर्द पैदा करता है। चीनी और चॉकलेट आधाशीशी का दर्द उत्पन्न करती है।
अतः बच्चों को पीपरमेंट-गोली, चॉकलेट आदि शक्करयुक्त पदार्थों से दूर रखने की सलाह दी जाती है। अमेरिका में 98 प्रतिशत बच्चों को दाँतों का रोग है जिसमें शक्कर तथा इससे बने पदार्थ जिम्मेदार माने जाते हैं।
परिष्कृतिकरण के कारण शक्कर में किसी प्रकार के खनिज, लवण, विटामिन्स या एंजाइम्स शेष नहीं रह जाते। जिससे उसके निरन्तर प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ एवं विकृतियाँ पनपने लगती हैं।
अधिक शक्कर अथवा मीठा खाने से शरीर में कैल्शियम तथा फासफोरस का संतुलन बिगड़ता है जो सामान्यतया 5 और 2 के अनुपात में होता है। शक्कर पचाने के लिए शरीर में कैल्शियम की आवश्यकता होती है तथा इसकी कमी से आर्थराइटिस, कैंसर, वायरस संक्रमण आदि रोगों की संभावना बढ़ जाती है। अधिक मीठा खाने से शरीर के पाचन तंत्र में विटामिन बी काम्पलेक्स की कमी होने लगती है जो अपच, अजीर्ण, चर्मरोग, हृदयरोग, कोलाइटिस, स्नायुतन्त्र संबंधी बीमारियों की वृद्धि में सहायक होती है।
शक्कर के अधिक सेवन से लीवर में ग्लाइकोजिन की मात्रा घटती है जिससे थकान, उद्वग्निता, घबराहट, सिरदर्द, दमा, डायबिटीज आदि विविध व्याधियाँ घेरकर असमय ही काल के गाल में ले जाती हैं।
लन्दन मेडिकल कॉलेज के प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ डॉ. लुईकिन अधिकांश हृदयरोग के लिए शक्कर को उत्तरदायी मानते हैं। वे शरीर की ऊर्जाप्राप्ति के लिए गुड़, खजूर, मुनक्का, अंगूर, शहद, आम, केला, मोसम्मी, खरबूजा, पपीता, गन्ना, शकरकंद आदि लेने का सुझाव देते

चीनी के संबंध में वैज्ञानिकों के मत -

"हृदयरोग के लिए चर्बी जितनी ही जिम्मेदार चीनी है। कॉफी पीने वाले को कॉफी इतनी हानिकारक नहीं जितनी उसमें चीनी हानि करती है।"
प्रो. ज्होन युडकीन, लंदन।
"श्वेत चीनी एक प्रकार का नशा है और शरीर पर वह गहरा गंभीर प्रभाव डालता है।"
प्रो. लिडा क्लार्क
"सफेद चीनी को चमकदार बनाने की क्रिया में चूना, कार्बन डायोक्साइड, कैल्शियम, फास्फेट, फास्फोरिक एसिड, अल्ट्रामरिन ब्लू तथा पशुओं की हड्डियों का चूर्ण उपयोग में लिया जाता है। चीनी को इतना गर्म किया जाता है कि प्रोटीन नष्ट हो जाता है। अमृत मिटकर विष बन जाता है।
सफेद चीनी लाल मिर्च से भी अधिक हानिकारक है। उससे वीर्य पानी सा पतला होकर स्वप्नदोष, रक्तदबाव, प्रमेह और मूत्रविकार का जन्म होता है। वीर्यदोष से ग्रस्त पुरुष और प्रदररोग से ग्रस्त महिलाएँ चीनी का त्याग करके अदभुत लाभ उठाती हैं।"
डॉ. सुरेन्द्र प्रसाद
"भोजन में से चीनी को निकाले बिना दाँतों के रोग कभी न मिट सकेंगे।"
डॉ. फिलिप, मिचिगन विश्वविद्यालय
"बालक के साथ दुर्व्यवहार करने वाला माता-पिता को यदि दण्ड देना उचित समझा जाता हो तो बच्चों को चीनी और चीनी से बनी मिठाइयाँ तथा आइसक्रीम खिलाने वाले माता पिता को जेल मे ही डाल दिना चाहिए।"
फ्रेंक विलसन
इसी प्रकार नमक (सोडियम क्लोराइड) का प्रचलन भोजन में दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। चटपटे और मसालेदार खाद्य पदार्थों का सेवन नित्य-नियमितरूप से बढ़ता जा रहा है। शक्कर की तरह नमक भी हमारे शरीर के लिए अत्यधिक हानिकारक है। यह शरीर के लिए अनिवार्य है लेकिन स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक लवण की मात्रा तो हमें प्राकृतिक रूप से खाद्य पदार्थों द्वारा ही मिल जाती है। हमारे द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली हरी सब्जियों से, अंकुरित बीजों आदि से हमारे शरीर में लवण की पूर्ति स्वतः ही हो जाती है।
कुछ वर्षों पूर्व ही एक ख्यातिप्राप्त समाचार पत्र ने अपने आलेख में प्रकाशित कर इस कथन की पुष्टि की थी कि नमक शरीर के लिए जहर से भी अधिक खतरनाक होता है। चिकित्सा विज्ञान के शोधकर्ताओं ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि रक्तचाप के रोगों का प्रमुख कारण ही नमक है, इसलिए हाई ब्लडप्रेशरवाले रोगियों को भोजन में नमक पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है। नमक छोड़नेवाले इस रोग से मुक्त हो जाते हैं और जो नहीं छोड़ते वे इससे त्रस्त रहते हैं।
एक सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ कि सुदूर वन्य एवं पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले अनेक आदिवासियों के आहारक्रम में नमक का कोई स्थान नहीं है। आधुनिक सुविधाओं से वंचित् वे लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से आज भी हमसे अधिक हृष्ट-पुष्ट एवं स्वस्थ हैं। शक्कर व नमक की पूर्ति वे खाद्य पदार्थों से ही कर लेते हैं।
नमक और शक्कर के अधिक सेवन से शरीर की रोगप्रतिकारक क्षमता का ह्रास होता है तथा उसे अनेक रोगों से जूझना पड़ता है।
अतः जिन्हें दीर्घायु होना है, सदैव स्वस्थ व प्रसन्न बने रहना है, साधनामय जीवन बिताना है, ऐसे लोग शक्कर एवं नमक को पूर्णरूपेण त्याग देवें अथवा सप्ताह में एक या दो बार नमक-शक्कररहित आहार लेते हुए, दैनिक जीवन में इनका अत्यल्प सेवन करें।
साधक परिवारों में खाद्य पदार्थों में नमक-शक्कर का अत्यन्त अल्प सेवन करना चाहिए। इससे आरोग्यता, प्रसन्नता बनी रहेगी तथा ईश्वरभक्ति में अधिक मदद मिलेगी।

Monday, December 2, 2013

रुद्राक्ष वर्ण और रंग के अनुसार

रुद्राक्ष के विषय में अनेक बातों का विचार उसके महत्व को व्यक्त करता है. रुद्राक्ष एक बेहतरीन रत्न है जो अनेक प्रकार के लाभों को दर्शाता है रुद्राक्ष द्वारा व्यक्ति का मन अति पावन रुप को पाता है तथा इसी के द्वारा मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है. इस कारण रुद्राक्ष के फ़ायदों को अनेक प्रकार से उल्लेखित किया जा सकता है. यह रुद्राक्ष सैकड़ों समस्याओं का सरल उपाय है तथा साथ ही साथ यह रुद्राक्ष जीवन के विभिन्न प्रभावों को प्रकट करता है. रुद्राक्ष के विषय में इस बात को भी ध्यान में रखना आवश्यक है कि रुद्राक्ष को धारण करने के क्या नियम है तथा किस रुद्राक्ष को कौन धारण कर सकता है. यदि देखा जाए तो इसके मूलभूत तत्वों का बखान विस्तार पूर्वक किया जा सकता है. धार्मिक क्षेत्र में रुद्राक्ष बहुत प्रसिद्ध है और अनेक प्रकार के जप एवं मंत्र सिद्धि में इनका उपयोग किया जाता है. रुद्राक्ष अपने विशेष गुणों के कारण शिवतुल्य और मंगलकारी कहा जाता है.
विभिन्न रंगों में रुद्राक्ष


  • रुद्राक्ष विभिन्न रंगों में प्राप्त होता है. प्रथम श्रेणी का रुद्राक्ष कत्थई रंग, चाकलेटी रंग या छुहारे से भी गहरे रंग का होता है. इसकी के साथ गहरे गुलाबी रंग का भी रुद्राक्ष पाया जाता है.
  • द्वितीय श्रेणी का रुद्राक्ष हल्के चॉकलेटी रंग का, मध्यम कत्थई रंग का और बादाम की गिरी के जैसे रंग सा होता है. इसमें मटमैला रंग भी देखा जा सकता है.
  • तृतीय श्रेणी में रुद्राक्ष का रंग सफेदी लिए हुए होता है अथवा भूरे रंग का होता है. सर्वप्रथम इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि रुद्राक्ष चार रंग का होता है--श्वेत,रक्त, पीत और कृष्ण वर्ण (काला रंग) का रुद्राक्ष. इसी रंग भेद से रुद्राक्ष धारण करने की विधि भी बताई गई है जिसके अनुसार रुद्राक्ष को धारण करना अधिक लाभदायक माना जाता है.

वर्ण के अनुसार रुद्राक्ष का विभाजन

हमारे यहां चार वर्णों में समुदायों का विभाजन हुआ इन चारों समुदायों में रुद्राक्ष को धारण करने के विषय में मुख्य बातों को व्यक्त किया गया. शास्त्रों में अलग - अलग वर्ण के लिए रुद्राक्ष का निर्धारित किया गया है जो इस प्रकार है-

  • ब्राह्मण वर्ण - प्रथम स्थान पर आते हैं ब्राह्मण, ब्राह्मण को श्वेत अर्थात सफेद रंग के रुद्राक्ष धारण करने को कहा गया है.
  • क्षत्रिय वर्ण - दूसरे स्थान पर आते हैं क्षत्रिय इन लोगों के लिए रक्त समान वर्ण के अर्थात गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रिओं के लिये हित कर कहा गया है.
  • वैश्य वर्ण - तीसरे स्थान पर वैश्य रहे इनके लिए पीत वर्ण का अर्थात पीले रंग का रुद्राक्ष धारण करना आवश्यक बताया गया है और साथ ही साथ इस रुद्राक्ष के अनेक लाभकारी गुणों का वर्णन प्रस्तुत किया गया है.
  • शूद्र वर्ण - चौथे स्थान पर आते हैं शूद्र, इन्हें कृष्ण वर्ण का रुद्राक्ष धारण करने को कहा जाता है इस प्रकार रुद्राक्ष को धारण करना रुद्राक्ष के फलों में वृद्धि करता है. इनसे सभी मुख वाले रुद्राक्षों का महत्व परिलक्षित होता है.

एक श्लोक द्वारा भी रुद्राक्ष को धारण करने की बात व्यक्त कि गई है. “सर्वाश्रमाणांवर� �णानां स्त्रीशूद्राणां शिवाज्ञया धार्या: सदैव रुद्राक्षा:" सदैव रुद्राक्षा:" अर्थात सभी आश्रमों एवं वर्णों तथा स्त्री और शूद्र को रुद्राक्ष धारण करना चाहिये, यह शिव आज्ञा है.
रुद्राक्ष के लिए धार्मिक ग्रंथों में विस्तार पूर्वक व्यक्त किया गया है. इसको धारण कैसे किया जा या इसे कौन धारण कर सकता है इन सभी बातों को सरल माध्यम द्वारा अभिव्यक्त किया गया है. इसी प्रकार ब्रह्मचारी, वानप्रस्थ, गृहस्थ और संन्यासी के लिए भी नियम पूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित माना गया है. समाज के विभिन्न वर्णों ने इस रुद्राक्ष को नियमानुसार ग्रहण किया तथा इसके प्रभाव को अपने में महसूस किया ।
रूद्राक्ष के प्रकार

रूद्राक्ष पर पड़ी धारियों के आधार पर ही इनके मुखों की गणना की जाती है. रूद्राक्ष एकमुखी से लेकर सत्ताईस मुखी तक पाए जाते हैं जिनके अलग-अलग महत्व व उपयोगिता हैं. 1-एक मुखी रुद्राक्ष को साक्षात शिव का रूप माना जाता है. इस 1 मुखी रुद्राक्ष द्वारा सुख-शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तथा भगवान आदित्य का आशिर्वाद भी प्राप्त होता है.

2-दो मुखी रुद्राक्ष या द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति का स्वरुप माना जाता है इस अर्धनारीश्व का स्वरूप समाहित है तथा चंद्रमा सी शीतलता प्रदान होती है

3-तीन मुखी रुद्राक्ष को अग्नि देव तथा त्रिदेवों का स्वरुप मान अगया है. 3 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है तथा पापों का शमन होता है.

4-चार मुखी रुद्राक्ष ब्रह्म स्वरुप होता है. इसे धारन करने से नर हत्या जैसा जघन्य पाप समाप्त होता है. चतुर्थ मुखी रुद्राक्ष धर्म, अर्थ काम एवं मोक्ष को प्रदान करता है.

5-पांच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र का स्वरूप माना जाता है. यह पंच ब्रह्म एवं पंच तत्वों का प्रतीक भी है. 5 मुखी को धारण करने से अभक्ष्याभक्ष्य एवं स्त्रीगमन जैसे पापों से मुक्ति मिलती है. तथा सुखों को प्राप्ति होती है.

6-छह मुखी रुद्राक्ष को साक्षात कार्तिकेय का स्वरूप माना गया है. इसे शत्रुंजय रुद्राक्ष भी कहा जाता है यह ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति तथा एवं संतान देने वाला होता है.

7-सात मुखी रुद्राक्ष या सप्तमुखी रुद्राक्ष दरिद्रता को दूर करने वाला होता है. इस 7 मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है.

8-आठ मुखी रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरूप माना जाता है. अष्टमुखी रुद्राक्षराहु के अशुभ प्रभावों से मुक्ति दिलाता है तथा पापों का क्षय करके मोक्ष देता है.

9-नौ मुखी रुद्राक्ष को भैरव का स्वरूप माना जाता है. इसे बाईं भुजा में धारण करने से गर्भहत्या जेसे पाप से मुक्ति मिलती है. नवम मुखी रुद्राक्ष को यम का रूप भी कहते हैं. यह केतु के अशुभ प्रभावों को दूर करता है.

10-दस मुखी रुद्राक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप कहा जाता है. 10 मुखी रुद्राक्ष शांति एवं सौंदर्य प्रदान करने वाला होता है.

इसे धारण करने से समस्त भय समाप्त हो जाते हैं.

11-एकादश मुखी रुद्राक्ष साक्षात भगवान शिव का रूप माना जाता है. 11 मुखी रुद्राक्ष को भगवान हनुमान जी का प्रतीक माना गया है इसे धारण करने से ज्ञान एवं भक्ति की प्राप्ति होती है.

12-द्वादश मुख वाला रुद्राक्ष बारह आदित्यों का आशीर्वाद प्रदान करता है. इस बारह मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान यह फल प्रदान करता है.

13-तेरह मुखी रुद्राक्ष को इंद्र देव का प्रतीक माना गया है इसे धारण करने पर व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है.

14-चौदह मुखी रुद्राक्ष भगवान हनुमान का स्वरूप है. इसे सिर पर धारण करने से व्यक्ति परमपद को पाता है.

15-पंद्रह मुखी रुद्राक्ष पशुपतिनाथ का स्वरूप माना गया है. यह संपूर्ण पापों को नष्ट करने वाला होता है.

16-सोलह मुखी रुद्राक्ष विष्णु तथा शिव का स्वरूप माना गया है. यह रोगों से मुक्ति एवं भय को समाप्त करता है.

17-सत्रह मुखी रुद्राक्ष राम-सीता का स्वरूप माना गया है यह रुद्राक्ष विश्वकर्माजी का प्रतीक भी है इसे धारण करने से व्यक्ति को भूमि का सुख एवं कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने का मार्ग प्राप्त होता है.

18-अठारह मुखी रुद्राक्ष को भैरव एवं माता पृथ्वी का स्वरूप माना गया है. इसे धारण करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है.

19-उन्नीस मुखी रुद्राक्ष नारायण भगवान का स्वरूप माना गया है यह सुख एवं समृद्धि दायक होता है.

20-बीस मुखी रुद्राक्ष को जनार्दन स्वरूप माना गया है. इस बीस मुखी रुद्राक्ष को धारण करने से व्यक्ति को भूत-प्रेत आदि का भय नहीं सताता.

21-इक्कीस मुखी रुद्राक्ष रुद्र स्वरूप है तथा इसमें सभी देवताओं का वास है. इसे धारण करने से व्यक्ति ब्रह्महत्या जैसे पापों से मुक्त हो जाता है.

गौरी शंकर रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष प्राकृतिक रुप से जुडा़ होता है शिव व शक्ति का स्वरूप माना गया है. इस रुद्राक्ष को सर्वसिद्धिदायक एवं मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है. गौरी शंकर रुद्राक्ष दांपत्य जीवन में सुख एवं शांति लाता है.

गणेश रुद्राक्ष - इस रुद्राक्ष को भगवान गणेश जी का स्वरुप माना जाता है. इसे धारण करने से ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति होती है. यह रुद्राक्ष विद्या प्रदान करने में लाभकारी है विद्यार्थियों के लिए यह रुद्राक्ष बहुत लाभदायक है.

गौरीपाठ रुद्राक्ष - यह रुद्राक्ष त्रिदेवों का स्वरूप है. इस रुद्राक्ष द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कृपा प्राप्त होती है.
रुद्राक्ष की पहचान

रुद्राक्ष एक अमूल्य मोती है जिसे धारण करके या जिसका उपयोग करके व्यक्ति अमोघ फलों को प्राप्त करता है. भगवान शिव का स्वरूप रुद्राक्ष जीवन को सार्थक कर देता है इसे अपनाकर सभी कल्याणमय जीवन को प्राप्त करते हैं.रुद्राक्ष की अनेक प्रजातियां तथा विभिन्न प्रकार उपल्बध हैं, परंतु रुद्राक्ष की सही पहचान कर पाना एक कठिन कार्य है. आजकल बाजार में सभी असली रुद्राक्ष को उपल्बध कराने की बात कहते हैं किंतु इस कथन में कितनी सच्चाई है इस बात का अंदाजा लगा पाना एक मुश्किल काम है. लालची लोग रुद्राक्ष पर अनेक धारियां बनाकर उन्हें बारह मुखी या इक्कीस मुखी रुद्राक्ष कहकर बेच देते हैं.
कभी-कभी दो रुद्राक्ष को जोड़कर एक रुद्राक्ष जैसे गौरी शंकर या त्रिजुटी रुद्राक्ष तैयार कर दिए जाता हैं. इसके अतिरिक्त उन्हें भारी करने के लिए उसमें सीसा या पारा भी डाल दिया जाता है, तथा कुछ रुद्राक्षों में हम सर्प, त्रिशुल जैसी आकृतियां भी बना दी जाती हैं.
रुद्राक्ष की पहचान को लेकर अनेक भ्रातियां भी मौजूद हैं. जिनके कारण आम व्यक्ति असल रुद्राक्ष की पहचान उचित प्रकार से नहीं कर पाता है एवं स्वयं को असाध्य पाता है. असली रुद्राक्ष का ज्ञान न हो पाना तथा पूजा ध्यान में असली रुद्राक्ष न होना पूजा व उसके प्रभाव को निष्फल करता है. अत: ज़रूरी है कि पूजन के लिए रुद्राक्ष का असली होना चाहिए.
रुद्राक्ष के समान ही एक अन्य फल होता है जिसे भद्राक्ष कहा जाता है, और यह रुद्राक्ष के जैसा हो दिखाई देता है इसलिए कुछ लोग रुद्राक्ष के स्थान पर इसे भी नकली रुद्राक्ष के रुप में बेचते हैं. भद्राक्ष दिखता तो रुद्राक्ष की भांति ही है किंतु इसमें रुद्राक्ष जैसे गुण नहीं होते.
असली रुद्राक्ष की पहचान के कुछ तरीके बताए जाते हैं जो इस प्रकार हैं.

  • रुद्राक्ष की पहचान के लिए रुद्राक्ष को कुछ घंटे के लिए पानी में उबालें यदि रुद्राक्ष का रंग न निकले या उस पर किसी प्रकार का कोई असर न हो, तो वह असली होगा.
  • रुद्राक्ष को काटने पर यदि उसके भीतर उतने ही घेर दिखाई दें जितने की बाहर हैं तो यह असली रुद्राक्ष होगा. यह परीक्षण सही माना जाता है,किंतु इसका नकारात्मक पहलू यह है कि रुद्राक्ष नष्ट हो जाता है.
  • रुद्राक्ष की पहचान के लिए उसे किसी नुकिली वस्तु द्वारा कुरेदें यदि उसमे से रेशा निकले तो समझें की रुद्राक्ष असली है.
  • दो असली रुद्राक्षों की उपरी सतह यानि के पठार समान नहीं होती किंतु नकली रुद्राक्ष के पठार समान होते हैं.
  • एक अन्य उपाय है कि रुद्राक्ष को पानी में डालें अगर यह डूब जाए, तो असली होगा. यदि नहीं डूबता तो नकली लेकिन यह जांच उपयोगी नहीं ं मानी जाती है क्योंकि रुद्राक्ष के डूबने या तैरने की क्षमता उसके घनत्व एवं कच्चे या पके होने पर निर्भर करती है और रुद्राक्ष मेटल या किसी अन्य भारी चीज से भी बना रुद्राक्ष भी पानी में डूब जाता है.
  • एक अन्य उपयोग द्वारा रुद्राक्ष के मनके को तांबे के दो सिक्कों के बीच में रखा जाए, तो थोड़ा सा हिल जाता है
  • क्योंकि रुद्राक्ष में चुंबकत्व होता है जिस की वजह से ऐसा होता है.
  • कहा जाता है कि दोनो अंगुठों के नाखूनों के बीच में रुद्राक्ष को रखें यदि वह घुमता है तो असली होगा अन्यथा नकली परंतु यह तरीका भी सही नही है.
  • एकमुखी रुद्राक्ष को ध्यानपूर्वक देखने पर उस पर त्रिशूल या नेत्र के चिन्ह का आभास होता है. रुद्राक्ष के दानों को तेज धूप में काफी समय तक रखने से अगर रुद्राक्ष पर दरार न आए या वह टूटे नहीं तो असली माने जाते हैं.
  • रुद्राक्ष को खरीदने से पहले कुछ मूलभूत बातों का अवश्य ध्यान रखें जैसे की रुद्राक्ष में किडा़ न लगा हो, टूटा-फूटा न हो, पूर्ण गोल न हो, जो रुद्राक्ष छिद्र करते हुए फट जाए इत्यादि रुद्राक्षों को धारण नहीं करना चाहिए .


विभिन्न राशियों के लिए रुद्राक्ष

रुद्राक्ष अपने अनेकों गुणों के कारण व्यक्ति को दिया प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के नेत्रों से निकले जलबिंदु से हुई है. अनेक धर्म ग्रंथों में रुद्राक्ष के महत्व को प्रकट किया गया है जिसके फलस्वरूप रुद्राक्ष के महत्व से जग प्रकाशित है. इसे धारण करने से व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. अत: रुद्राक्ष को यदि राशि के अनुरुप धारन किया जाए तो यह ओर भी अधिक प्रभावशाली सिद्ध होता है. रुद्राक्ष को राशि, ग्रह और नक्षत्र के अनुसार धारण करने से उसकी फलों में कई गुणा वृद्धि हो जाती है. ग्रह दोषों तथा अन्य समस्याओं से मुक्ति हेतु रुद्राक्ष बहुत उपयोगी होता है. कुंडली के अनुरूप सही और दोषमुक्त रुद्राक्ष धारण करना अमृत के समान होता है.
रुद्राक्ष धारण एक सरल एवं सस्ता उपाय है, इसे धारण करने से व्यक्ति उन सभी इच्छाओं की पूर्ति कर लेता है जो उसकी सार्थकता के लिए पूर्ण होती है. रुद्राक्ष धारण से कोई नुकसान नहीं होता यह किसी न किसी रूप में व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति कराता है.
कई बार कुंडली में शुभ-योग मौजूद होने के उपरांत भी उन योगों से संबंधित ग्रहों के रत्न धारण करना लग्नानुसार उचित नहीं होता इसलिए इन योगों के अचित एवं शुभ प्रभाव में वृद्धि के लिए इन ग्रहों से संबंधित रुद्राक्ष धारण किए जा सकते हैं और यह रुद्राक्ष व्यक्ति के इन योगों में अपनी उपस्थित दर्ज कराकर उनके प्रभावों को की गुणा बढा़ देते हैं. अर्थात गजकेसरी योग के लिए दो और पांच मुखी, लक्ष्मी योग के लिए दो और तीन मुखी रुद्राक्ष लाभकारी होता है.
इसी प्रकार अंक ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति अपने मूलांक, भाग्यांक और नामांक के अनुरूप रुद्राक्ष धारण कर सकता है. क्योंकि इन अंकों में भी ग्रहों का निवास माना गया है. हर अंक किसी ग्रह न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है उदाहरण स्वरुप अंक एक के स्वामी ग्रह सूर्य है और अंक दो के चंद्रमा इसी प्रकार एक से नौ तक के सभी अंकों के विशेष ग्रह मौजूद हैं. अतः व्यक्ति संबंधित ग्रह के रुद्राक्ष धारण कर सकता है. इसी प्रकार नौकरी एवं व्यवसाय अनुरूप रुद्राक्ष धारण करना कार्य क्षेत्र में चौमुखी विकास, उन्नति और सफलता को दर्शाता है.
राशियों के अनुरुप रुद्राक्ष



  • मेष राशि के स्वामी ग्रह मंगल हैं, इसलिए मेष राशि के जातकों को तीन मुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए.
  • वृषभ राशि के स्वामी ग्रह शुक्र है अत: इस राशि के जातकों के लिए छ: मुखी रुद्राक्ष फायदेमंद होता है.
  • मिथुन राशि के स्वामी ग्रह बुध है. मिथुन राशि के लिए चार मुखी रुद्राक्ष है.
  • कर्क राशि के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं इस राशि के लिए दो मुखी रुद्राक्ष लाभकारी है.
  • सिंह राशि के स्वामी ग्रह सूर्य हैं. इस राशि के लिए एक या बारह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.
  • कन्या राशि के स्वामी ग्रह बुध हैं. कन्या राशि के लिए चार मुखी रुद्राक्ष लाभदायक है.
  • तुला राशि के स्वामी ग्रह शुक्र हैं. तुला राशि के लिए छ: मुखी रुद्राक्ष तथा तेरह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.
  • वृश्चिक राशि के स्वामी ग्रह मंगल हैं. वृश्चिक राशि के लिए तीन मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होगा.
  • धनु राशि के स्वामी ग्रह (गुरु)बृहस्पति हैं. धनु राशि के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष उपयोगी है.
  • मकर राशि के स्वामी ग्रह शनि हैं. मकर राशि के लिए सात या चौदह मुखी रुद्राक्ष उपयोगी होगा.
  • कुंभ राशि के स्वामी ग्रह शनि हैं. कुंभ राशि के व्यक्ति के लिए सात या चौदह मुखी रुद्राक्ष लाभदायक होगा.
  • मीन राशि के स्वामी ग्रह गुरु हैं. इस राशि के जातकों के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष उपयोगी है.
  • राहु के लिए आठ मुखी रुद्राक्ष और केतु के लिए नौमुखी रुद्राक्ष का वर्णन किया गया है.


रुद्राक्ष

रूद्राक्षजाबालो उपनिषद रूद्राक्ष से संबंधित उपनिषद है यह उपनिषद सामवेदीय शाखा के अंतर्गत आता है जिसमें भगवान शिव के 'रुद्राक्ष' की महत्ता को व्यक्त किया गया है. इस उपनिषद में रूद्राक्ष से संबंधित अनेक प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता है जिसमें रूद्राक्ष की उत्पत्ति उसका आकार, उसे धारण करने का तरीका उससे प्राप्त फल होने वाले फलों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है. इस उपनिषद में भुसुण्ड और 'कालाग्निरुद्र' के मध्य होने वाले संवादों के द्वारा इसे कथा का रूप प्राप्त होता है. रुद्राक्ष उत्पत्ति | Origin Of Rudraksha


रूद्राक्षजाबालो उपनिषद के प्रारंभ में भुसुण्ड, कालाग्निरूद्र से प्रश्न करते हैं कि कृपा कर आप मुझे रुद्राक्ष के विषय में बताएं यह क्या है व कहां से आया इसके क्या लाभ हैं इन सभी तथ्यों को आप मेरे समक्ष प्रस्तुत करें. इस पर प्रभु कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं रूद्राक्ष की उत्पत्ति मेरे द्वारा ही हुई है एक बार जब त्रिपुरासुर का वध करते हुए मेरे नेत्रों में से जल की कुछ बूंदे आँसू के रूप में पृथ्वी पर जा गिरी और वह बूंदे रुद्राक्ष के रूप में परिवर्तित हो गईं जिस प्रकार रूद्राक्ष की उत्पत्ति हुई.
रूद्राक्ष नाम का उच्चारण मात्र ही सभी फलों को प्रदान करने वाला है इसके नाम को जपने से दान में दस गायों को देने जितना लाभ प्राप्त होता है. जब मैने अपनी आँखें एक हजा़र वर्षों तक बंद रखीं तब मेरी पलकों से, पानी की कुछ बूंदें नीचे गिरी तो वह रूद्राक्ष बनीं.
यह रूद्राक्ष भक्तों के समस्त पापों नष्ट कर देता है. इसे पहनकर सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. रूद्राक्ष को देखने भर से ही लाखों कष्ट दूर हो जाते हैं और इसे धारण करने पर करोडों लाभ प्राप्त होते हैं तथा इसे पहनकर मंत्र जाप करने से यह और भी ज्यादा प्रभावशाली होता है.
रूद्राक्ष वर्णन | Description Of Rudraksha

जो रूद्राक्ष आंवले के आकार जितना बड़ा होता है वह रूद्राक्ष अच्छा होता है, जो रूद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह मध्यम प्रकार का माना जाता है. जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है. यह रूद्राक्ष माला के आकार के बारे में मेरा विचार है.
इसके बाद वह कहते हैं कि ब्राह्मण सफेद रूद्राक्ष है. लाल एक क्षत्रिय है. पीला एक वैश्य है और काले रंग का रूद्राक्ष एक शूद्र है.इसलिए, एक ब्राह्मण को सफेद रूद्राक्ष , ​​एक क्षत्रिय को लाल, एक वैश्य को पीला और एक शूद्र को काला रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.
उन रूद्राक्ष-मोती को उपयोग में लाना चाहिए जो सुन्दर, मजबूत, बड़ा, तथा कांटेदार हो और उन रूद्राक्ष को नहीं लेना चहिए जो कहीं से टूटा हो या उस पर कीडा लगा है या कांटे बिना हो उचित नहीं होता, जिस रूद्राक्ष में प्रकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें खुद छेद किया जाए वह अच्छा नहीं होता, भगवान शिव के भक्त को रूद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए.
रूद्राक्ष के एक हजार मोती पहनना लाभदायक भक्त, जब सिर पर रूद्राक्ष को धारण करे तो उसे इष्ठ मंत्र जपना चाहिए , जब रूद्राक्ष को गले में पहने तो तात्पुरषा मंत्र जपना चाहिए और जब इसे वक्ष और हाथ पर धारण करें तो अघोर मंत्र को जपना चाहिए यह कल्याणकारी होता है.
रूद्राक्ष के विभिन्न रूप | Various Forms Of Rudraksha

भुसुण्ड, फिर से 'कालाग्निरुद्र' से पूछते हैं कि रूद्राक्ष माला के रूप एवं प्रभाव क्या होते हैं आप मुझे इसके सभी रहस्यों का ज्ञान प्रदान करें. ‘कालाग्निरुद्र' उनसे कहते हैं एकमुखी रुद्राक्ष परमतत्त्व का रूप होता है. दोमुखी रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर कहते हैं इसे धारण करने से शक्ति एवं शिव दोनो की प्राप्ति होती है, तीनमुखी रुद्राक्ष अग्नित्रय है इससे अग्नि का आशीर्वाद प्राप्त होता है, चारमुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा का रूप है,
पंचमुखी रुद्राक्ष पांच मुख वाले शिव का रूप है जो हत्या जैसे पाप को भी नष्ट कर देता है छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय एवं गणेश का रूप है इसे धारण करके भक्त धन, स्वास्थ्य, बुद्धि व ज्ञान पाता है, सप्तमुखी रुद्राक्ष सात लोकों, सात मातृशक्ति का रूप है इसे पहनकर भक्त धन, स्वास्थ्य और मन की पवित्रता को पाता है, अष्टमुखी रुद्राक्ष आठ गुणों का, प्रकृति का रूप है इसे पहन के भक्त इन देवों की कृपा प्राप्त करता है, नौमुखी रुद्राक्ष नौ शक्तियों का रूप है इसे धारण करके भक्त को नौ शक्तियों का अनुग्रह उपलब्ध हो जाता है, दसमुखी रुद्राक्ष यम देवता का,
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का रूप माना गया है इसे धारण करके धन में वृद्धि की कृपा प्राप्त होती है, बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु एवं बारह आदित्यों का प्रतीक माना गया है इसे उपयोग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, तेरहमुखी रुद्राक्ष कामदेव का रूप माना गया है इसे धारण करने से समस्त मानोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा चौदहमुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति रूद्र भगवान के नेत्रों से हुई मानी जाती है इसे धारण करने से रोगों का नाश होता है.
रूद्राक्ष धारण के नियम | Rules For Wearing Rudraksha

रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए उसे मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना चाहिए कर देना चाहिए. रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. रूद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी हैं उसकी नाभि विष्णु हैं , उसके चेहरे रुद्र है और उसके छिद्र देवताओं के होते हैं.
एक बार संतकुमार जी कालाग्निरूद्र से पूछते हैं कि "हे भगवान! मुझे रूद्राक्ष पहनने के लिए नियमों को बताएँ. और उसी समय निदाघ , दत्तात्रेय, कात्यायन, भारद्वाज, कपिला, वशिष्ठ और पिप्प्लाद ऋषि वहां पहुंचते हैं और वह भी कालाग्निरूद्र से रूद्राक्ष को धारण करने के नियम को जानने की इच्छा प्रकट करते हैं.
तब कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं कि, रुद्र की अक्षि (आँखें) से उत्पन्न होने के कारण इसे रूद्राक्ष कहा गया
इस रूद्राको छूने मात्र से ही कई पाप क्षय हो जाते हैं और इस रूद्राक्ष को धारण करने पर इसका फल करोंडों गुना बढ़ जाता है.
रूद्राक्षजाबालो उपनिषदमहत्व । Rudraksha Jabala Upanishad Importance

रूद्राक्षजाबालो उपनिषद एक महत्वपूर्ण उपनिषद है जो रूद्राक्ष के महत्व को स्पष्ट करता है इस उपनिषद में रूद्राक्ष की पूर्ण विवेचना प्रस्तुत कि गई है जिसमें इसकी उत्पत्ति इसे गुण इसके शुभ लाभ तथा धारण करने के नियम आदि बातों को बहुत ही सरल प्रकार से व्यक्त किया गया है इस उपनिषद का श्रवण एवं मनन करने से समस्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है इसे पढने वाला गुरू की उपाद्धी पाता है मंत्रों का शिक्षक बनता है इस उपनिषद का किसी भी समय पठन पाठन शुभ फल की प्राप्ति कराता है तथा व्यक्ति के कई जन्मों के पापों को नष्ट कर. उसे गायत्री जाप के छह लाख मंत्रों के समान फल प्राप्त होता है.
रूद्राक्षजाबालोप� �िषद रूद्राक्ष से संबंधित उपनिषद है यह उपनिषद सामवेदीय शाखा के अंतर्गत आता है जिसमें भगवान शिव के 'रुद्राक्ष' की महत्ता को व्यक्त किया गया है. इस उपनिषद में रूद्राक्ष से संबंधित अनेक प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता है जिसमें रूद्राक्ष की उत्पत्ति उसका आकार, उसे धारण करने का तरीका उससे प्राप्त फल होने वाले फलों का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया गया है. इस उपनिषद में भुसुण्ड और 'कालाग्निरुद्र' के मध्य होने वाले संवादों के द्वारा इसे कथा का रूप प्राप्त होता है. रुद्राक्ष उत्पत्ति

रूद्राक्षजाबालोप� �िषद के प्रारंभ में भुसुण्ड, कालाग्निरूद्र से प्रश्न करते हैं कि कृपा कर आप मुझे रुद्राक्ष के विषय में बताएं यह क्या है व कहां से आया इसके क्या लाभ हैं इन सभी तथ्यों को आप मेरे समक्ष प्रस्तुत करें. इस पर प्रभु कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं रूद्राक्ष की उत्पत्ति मेरे द्वारा ही हुई है एक बार जब त्रिपुरासुर का वध करते हुए मेरे नेत्रों में से जल की कुछ बूंदे आँसू के रूप में पृथ्वी पर जा गिरी और वह बूंदे रुद्राक्ष के रूप में परिवर्तित हो गईं जिस प्रकार रूद्राक्ष की उत्पत्ति हुई.
रूद्राक्ष नाम का उच्चारण मात्र ही सभी फलों को प्रदान करने वाला है इसके नाम को जपने से दान में दस गायों को देने जितना लाभ प्राप्त होता है. जब मैने अपनी आँखें एक हजा़र वर्षों तक बंद रखीं तब मेरी पलकों से, पानी की कुछ बूंदें नीचे गिरी तो वह रूद्राक्ष बनीं.
यह रूद्राक्ष भक्तों के समस्त पापों नष्ट कर देता है. इसे पहनकर सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. रूद्राक्ष को देखने भर से ही लाखों कष्ट दूर हो जाते हैं और इसे धारण करने पर करोडों लाभ प्राप्त होते हैं तथा इसे पहनकर मंत्र जाप करने से यह और भी ज्यादा प्रभावशाली होता है.
रूद्राक्ष वर्णन

जो रूद्राक्ष आंवले के आकार जितना बड़ा होता है वह रूद्राक्ष अच्छा होता है, जो रूद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह मध्यम प्रकार का माना जाता है. जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है. यह रूद्राक्ष माला के आकार के बारे में मेरा विचार है.
इसके बाद वह कहते हैं कि ब्राह्मण सफेद रूद्राक्ष है. लाल एक क्षत्रिय है. पीला एक वैश्य है और काले रंग का रूद्राक्ष एक शूद्र है.इसलिए, एक ब्राह्मण को सफेद रूद्राक्ष , ​​एक क्षत्रिय को लाल, एक वैश्य को पीला और एक शूद्र को काला रूद्राक्ष धारण करना चाहिए.
उन रूद्राक्ष-मोती को उपयोग में लाना चाहिए जो सुन्दर, मजबूत, बड़ा, तथा कांटेदार हो और उन रूद्राक्ष को नहीं लेना चहिए जो कहीं से टूटा हो या उस पर कीडा लगा है या कांटे बिना हो उचित नहीं होता, जिस रूद्राक्ष में प्रकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें खुद छेद किया जाए वह अच्छा नहीं होता, भगवान शिव के भक्त को रूद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए.
रूद्राक्ष के एक हजार मोती पहनना लाभदायक भक्त, जब सिर पर रूद्राक्ष को धारण करे तो उसे इष्ठ मंत्र जपना चाहिए , जब रूद्राक्ष को गले में पहने तो तात्पुरषा मंत्र जपना चाहिए और जब इसे वक्ष और हाथ पर धारण करें तो अघोर मंत्र को जपना चाहिए यह कल्याणकारी होता है.
रूद्राक्ष के विभिन्न रूप

भुसुण्ड, फिर से 'कालाग्निरुद्र' से पूछते हैं कि रूद्राक्ष माला के रूप एवं प्रभाव क्या होते हैं आप मुझे इसके सभी रहस्यों का ज्ञान प्रदान करें. ‘कालाग्निरुद्र' उनसे कहते हैं एकमुखी रुद्राक्ष परमतत्त्व का रूप होता है. दोमुखी रुद्राक्ष को अर्धनारीश्वर कहते हैं इसे धारण करने से शक्ति एवं शिव दोनो की प्राप्ति होती है, तीनमुखी रुद्राक्ष अग्नित्रय है इससे अग्नि का आशीर्वाद प्राप्त होता है, चारमुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा का रूप है,

पंचमुखी रुद्राक्ष पांच मुख वाले शिव का रूप है जो हत्या जैसे पाप को भी नष्ट कर देता है छहमुखी रुद्राक्ष कार्तिकेय एवं गणेश का रूप है इसे धारण करके भक्त धन, स्वास्थ्य, बुद्धि व ज्ञान पाता है, सप्तमुखी रुद्राक्ष सात लोकों, सात मातृशक्ति का रूप है इसे पहनकर भक्त धन, स्वास्थ्य और मन की पवित्रता को पाता है, अष्टमुखी रुद्राक्ष आठ गुणों का, प्रकृति का रूप है इसे पहन के भक्त इन देवों की कृपा प्राप्त करता है, नौमुखी रुद्राक्ष नौ शक्तियों का रूप है इसे धारण करके भक्त को नौ शक्तियों का अनुग्रह उपलब्ध हो जाता है, दसमुखी रुद्राक्ष यम देवता का,
ग्यारहमुखी रुद्राक्ष एकादश रुद्र का रूप माना गया है इसे धारण करके धन में वृद्धि की कृपा प्राप्त होती है, बारहमुखी रुद्राक्ष महाविष्णु एवं बारह आदित्यों का प्रतीक माना गया है इसे उपयोग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, तेरहमुखी रुद्राक्ष कामदेव का रूप माना गया है इसे धारण करने से समस्त मानोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा चौदहमुखी रुद्राक्ष की उत्पत्ति रूद्र भगवान के नेत्रों से हुई मानी जाती है इसे धारण करने से रोगों का नाश होता है.
रूद्राक्ष धारण के नि यम

रुद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को तामसिक पदार्थों से दूर रहना चाहिए उसे मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का त्याग करना चाहिए कर देना चाहिए. रूद्राक्ष को पूर्णिमा जैसे शुभ दिनों में धारण करने पर व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं. रूद्राक्ष का आधार ब्रह्मा जी हैं उसकी नाभि विष्णु हैं , उसके चेहरे रुद्र है और उसके छिद्र देवताओं के होते हैं.
एक बार संतकुमार जी कालाग्निरूद्र से पूछते हैं कि "हे भगवान! मुझे रूद्राक्ष पहनने के लिए नियमों को बताएँ. और उसी समय निदाघ , दत्तात्रेय, कात्यायन, भारद्वाज, कपिला, वशिष्ठ और पिप्प्लाद ऋषि वहां पहुंचते हैं और वह भी कालाग्निरूद्र से रूद्राक्ष को धारण करने के नियम को जानने की इच्छा प्रकट करते हैं.
तब कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं कि, रुद्र की अक्षि (आँखें) से उत्पन्न होने के कारण इसे रूद्राक्ष कहा गया
इस रूद्राको छूने मात्र से ही कई पाप क्षय हो जाते हैं और इस रूद्राक्ष को धारण करने पर इसका फल करोंडों गुना बढ़ जाता है.
रूद्राक्षजाबालोप� �िषद महत्व

रूद्राक्षजाबालोप� �िषद एक महत्वपूर्ण उपनिषद है जो रूद्राक्ष के महत्व को स्पष्ट करता है इस उपनिषद में रूद्राक्ष की पूर्ण विवेचना प्रस्तुत कि गई है जिसमें इसकी उत्पत्ति इसे गुण इसके शुभ लाभ तथा धारण करने के नियम आदि बातों को बहुत ही सरल प्रकार से व्यक्त किया गया है इस उपनिषद का श्रवण एवं मनन करने से समस्त शुभ फलों की प्राप्ति होती है इसे पढने वाला गुरू की उपाद्धी पाता है मंत्रों का शिक्षक बनता है इस उपनिषद का किसी भी समय पठन पाठन शुभ फल की प्राप्ति कराता है तथा व्यक्ति के कई जन्मों के पापों को नष्ट कर. उसे गायत्री जाप के छह लाख मंत्रों के समान फल प्राप्त होता है.

रुद्राक्ष को धारण करना या इसका उपयोग चिंता, कष्ट, दु:ख और पापों का अंत करने वाला माना गया है. शास्त्रों के अनुसार रुद्राक्ष का असर और प्रभाव उसके रूप, रंग, आकार पर बहुत निर्धारित करता है. रुद्राक्ष चार रंग में प्राप्त होता है सफेद, लाल, पीला और काला. इसी प्रकार वर्ण के आधार पर भी रूद्राक्ष को विभाजित किया गया है. रुद्राक्ष का आकार उसके प्रभावों को सत्यापित करता है. आंवले के आकार जितना बड़ा रुद्राक्ष अच्छा होता है, जो रुद्राक्ष एक बदारी फल (भारतीय बेरी) के रूप में होता है वह मध्यम प्रकार का माना जाता है. जो रूद्राक्ष चने के जैसा छोटा होता है वह सबसे बुरा माना जाता है. जिस रुद्राक्ष में प्राकृतिक रूप से छिद्र बना होता है वह उत्तम होता है और जिसमें छेद किया जाए वह अच्छा नहीं होता, भगवान शिव के भक्त को रुद्राक्ष अवश्य धारण करना चाहिए.
रुद्राक्ष के एक हजार मोती पहनना लाभदायक होता है. भक्त, जब सिर पर रूद्राक्ष को धारण करे तो उसे इष्ठ मंत्र जपना चाहिए , जब रुद्राक्ष को गले में पहने तो “तात्पुरषा मंत्र” जपना चाहिए और जब इसे वक्ष और हाथ पर धारण करें तो अघोर मंत्र को जपना चाहिए, यह कल्याणकारी होता है.
रुद्राक्ष जाबालोपनिषद में संतकुमार जी कालाग्निरूद्र से पूछते हैं कि "हे भगवान! मुझे रूद्राक्ष पहनने के लिए नियमों को बताएँ. और उसी समय निदाघ , दत्तात्रेय, कात्यायन, भारद्वाज, कपिला, वशिष्ठ और पिप्प्लाद ऋषि वहां पहुंचते हैं और वह भी कालाग्निरूद्र से रूद्राक्ष को धारण करने के नियम को जानने की इच्छा प्रकट करते हैं. तब कालाग्निरूद्र उनसे कहते हैं कि, रुद्र की अक्षि (आँखें) से उत्पन्न होने के कारण इसे रुद्राक्ष कहा गया. इस रूद्राक्ष को छूने मात्र से ही कई पाप क्षय हो जाते हैं और इस रूद्राक्ष को धारण करने पर इसका फल करोड़ों गुना बढ़ जाता है.
रुद्राक्ष का आकार विभाजन | Classification of Rudraksha on the Basis of Size

रुद्राक्ष को उसके आकार के आधार पर तीन श्रेणीयों में बांटा गया है.
प्रथम श्रेणी का रुद्राक्ष | First class Rudraksha

प्रथम श्रेणी का रुद्राक्ष उत्तम रुद्राक्ष कहा जाता है. इस रुद्राक्ष का आकार आंवले के फल के आकार के समान होता है. अत: इस प्रकार का रुद्राक्ष उत्तम श्रेणी में आता है.
द्वितीय श्रेणी रुद्राक्ष | Second class Rudraksha

दूसरी श्रेणी में आता है मध्यम दर्जे का रुद्राक्ष. जो रुद्राक्ष आकार में बेर के समान दिखाई दे वह रुद्राक्ष मध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष कहा जाता है.
तृतीय श्रेणी का रुद्राक्ष | Third Class Rudraksha

तीसरे स्थान में रखा गया रुद्राक्ष निम्न श्रेणी के रुद्राक्ष में गिना जाता है. इसे निम्न श्रेणी का रुद्राक्ष कहते हैं. इस रुद्राक्ष का आकार चने के बराबर होता है.
रुद्राक्ष के आकार का महत्व | Significance of size in selection of Rudraksha

सभी रुद्राक्ष ही पापों को नष्ट कर शिव कृपा देने वाले होते हैं किंतु यदि उन्हें नियमानुसार धारण किया जाए तो वह चमत्कारी प्रभाव छोड़ते हैं. सही आकार, ठोस, रुद्राक्ष पहनना चाहिए. सुख-शांति एवं अच्छे भाग्य के लिए बेर के आकार का रुद्राक्ष अनुकूल माना गया है. पापों तथा अनिष्ट को दूर करने के लिए आंवले के आकार का रुद्राक्ष अच्छा माना जाता है. टूटा हुआ ,कीड़े लगा रुद्राक्ष उपयोग में नहीं लाना चाहिए. रंग, रुप, आकार के आधार पर रुद्राक्ष को एक से इक्कीस मुखी रुद्राक्ष का महत्व बताया गया है जिन्हें धारण करने से विभिन्न फलों की प्राप्ति होती है.