Monday, July 23, 2012

मनमोहन सिंह की बुनियादी समस्या यह है कि वह खुद फैसले नहीं लेना चाहते, लेकिन प्रधानमंत्री हैं तो फैसले तो लेने ही थे. जब उनके पास फाइलें जाने लगीं तो उन्होंने सोचा कि वह क्यों फैसले लें, इसलिए उन्होंने मंत्रियों का समूह बनाना शुरू किया, जिसे जीओएम (मंत्री समूह) कहा गया. सरकार ने जितने जीओएम बनाए, उनमें दो तिहाई से ज़्यादा के अध्यक्ष उन्होंने प्रणब मुखर्जी को बनाया. प्रणब मुखर्जी, जब चिदंबरम वित्त मंत्री थे, एक ऐसे जीओएम के भी अध्यक्ष बन गए, जिसका काम था बाक़ी सारे जीओएम से काम कराना, क्योंकि मंत्री जीओएम के लिए समय नहीं देते थे. मुझे नहीं पता कि ऐसे किसी भी जीओएम ने कोई अनुशंसा की हो, जिसके अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी रहे हों, क्योंकि उनके पास स्वयं जीओएम की बैठकों को किसी तार्किक अंत तक ले जाने का समय नहीं था. प्रणब मुखर्जी के अपने मंत्रालय में कितने हल्के ढंग से विचार होता था और जिसके ऊपर समय देना प्रणब मुखर्जी मुनासिब नहीं समझते थे, उसका एक उदाहरण मुद्रास्फीति है. प्रणब मुखर्जी का मानना था कि इन्फ्लेशन इज़ ए सिस्टमेटिक अप्रोच. इट्‌स ए बास्केट ऑफ गुड्‌स. उन्होंने कभी मुद्रास्फीति पर हमला नहीं किया, व्यवस्था पर हमला किया. वित्त मंत्रालय यह समझ नहीं पाया कि मुद्रा आपूर्ति ज़्यादा होने से मुद्रास्फीति बढ़ी है या फिर वस्तुओं की कमी की वजह से. हक़ीक़त यह थी कि औद्योगिक विकास कम हो रहा था. भारत के अपने औद्योगिक विकास की दर नीचे जा रही थी. आवश्यक वस्तुओं की कमी हो रही थी, जिसकी वजह से मुद्रास्फीति बढ़ी. सरकार अपनी महान बुद्धिमानी से महंगाई कैसे बढ़ाती है, इसका उदाहरण है आयरन ओर (लौह अयस्क) और स्टील. हमारा आयरन ओर ज़्यादा से ज़्यादा चीन जा रहा था. सरकार ने तय किया कि उसे चीन नहीं भेजना है तो उसके लिए उसने सीधा रास्ता न लेकर रेलवे के किराए में 300 प्रतिशत की वृद्धि कर दी. इससे आयरन ओर चीन जाने से तो रुक गया, लेकिन सरकार ने यह नहीं सोचा कि इसकी वजह से आयरन ओर हिंदुस्तान की फैक्ट्रियों में भी नहीं जाएगा. इसका असर टाटा, राउरकेला आदि जगहों में स्थित हिंदुस्तान की सारी स्टील फैक्ट्रियों पर पड़ा और इसकी वजह से आयरन ओर का काम करने वाले, खासकर खनन में लगे लोगों की कमर टूट गई. अब हिंदुस्तान में स्टील बनना कम हो गया, स्टील अब चीन से आ रहा है, जो महंगा है और हम वही महंगा स्टील खरीद रहे हैं. हमने एक उद्योग को मारा. कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि सरकार प्याज़ भी खा रही है और जूते भी. ठीक यही उदाहरण सीमेंट का है. 50 रुपये की बोरी 400 रुपये तक बिक गई. कारणों को वित्त मंत्रालय ने दूर नहीं किया.
                            

वित्त मंत्रालय से जुड़ी हुई संस्थाएं, चाहे वह आरबीआई हो या दूसरी संस्थाएं, किसी के पास भी सही आंकड़ा नहीं है कि कुल काला धन कितना है. कोई 4 लाख करोड़ रुपये कह रहा है तो कोई 8 लाख करोड़ तो कोई 10 लाख करोड़ और आरबीआई इसे 30 लाख करोड़ बता रहा है. सरकारी एजेंसियों के अलग-अलग आंकड़े बताते हैं कि वित्त मंत्रालय काले धन के ऊपर गंभीर नहीं है. वित्त मंत्रालय का सबसे मज़ेदार विरोधाभास नक़ली नोटों को लेकर है. वैसे तो एक कमाल यह हुआ कि नक़ली नोट हिंदुस्तान के रिजर्व बैंक की ट्रेजरी में पाए गए. उसकी सीबीआई जांच हुई, छापे पड़े, लोग गिरफ्तार हुए, लेकिन उसके बाद क्या कार्रवाई हुई, कुछ पता नहीं. यह भी पता चला कि रिजर्व बैंक से नक़ली नोट बैंकों में भेजे गए. इसके ऊपर वित्त मंत्रालय ने कितना ध्यान दिया, हमें नहीं पता, लेकिन हमें इतना पता है कि वित्त मंत्रालय ने इस पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया. हालांकि हमारी बातें विरोधाभासी लग सकती हैं, पर सच यही है. दूसरी चीज़ यह कि नक़ली नोट के बारे में पी चिदंबरम जब वित्त मंत्री थे तो उन्होंने बयान दिया था कि हिंदुस्तान में जितनी करेंसी मौजूद है, उसमें हर तीसरा नोट नक़ली है. सरकार जब ऐसा बयान देती है तो हमें जान लेना चाहिए कि हमारा अर्थतंत्र, हमारा वित्त मंत्रालय कितना सजग है. उसने इसे रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं किया.
आपके सामने एक घटना रखते हैं. आपके सामने इम्तिहान पास करने के दो तरीक़े हैं. दोनों ही तरीक़ों से नंबर बराबर आते हैं. पहला तरीक़ा है कि आप रट्टा मारें और इतने ज़्यादा जवाब रट लें कि आपके सवाल का उत्तर सही हो और आपके 90 नंबर आ जाएं. दूसरा तरीक़ा है कि आपके पास ज्ञान इतना हो कि आपके पास जो सवाल आए, उसका समझ कर उत्तर दें. जवाब वही होगा और आपको भी 90 नंबर ही मिलेंगे. पर गाड़ी तब फंसती है, जब कहीं पर मुश्किल सवाल आ जाए. ऐसा सवाल, जिसका रट्टा नहीं मारा गया हो और तब ज्ञान वाला आदमी पास हो जाता है और रट्टे वाला रुक जाता है. अब तक हमारे देश में साधारण सवाल थे, साधारण समस्याएं थीं, तो हमारे आईएएस एवं मंत्रीगण रट्टा मारकर उनका हल निकालते रहे (चूंकि रट्टा मारकर पास हुए थे), लेकिन अब समस्या टेढ़ी हो गई और सवाल टेढ़ा हो गया, तो अब वे बग़लें झांक रहे हैं. मैं यह नहीं कहता कि वित्त मंत्री भी रट्टा मारकर पास हुए हैं, पर उनकी गतिविधियां यह बताती हैं या उनके तरीक़े यह बताते हैं कि वह भी रट्टा मारकर पास हुए, इसलिए इस समय लड़खड़ा रहे हैं. अजीब फैसले लेते हैं, सीआरआर कम करते हैं, मुद्रा प्रवाह बढ़ जाता है. ज़्यादा पैसे आ जाते हैं, महंगाई बढ़ जाती है. उसे संभालने के लिए एसएलआर कम करते हैं. ज्वैलरी पर एक प्रतिशत टैक्स लगा दिया. फैसला ऐसा किया कि उस एक प्रतिशत का असेसमेंट आपने इंस्पेक्टर पर छोड़ दिया. सारे देश में आंदोलन हुआ. किसी को एक प्रतिशत टैक्स देने में ऐतराज़ नहीं था, लेकिन उसके असेसमेंट के लिए आपने जो इंस्पेक्टर लगा दिया, उस पर ऐतराज़ था.
उसी तरह से लोकसभा में पहली बार, शायद विश्व में पहली बार एक शब्द आया, सेंस ऑफ हाउस. जब अन्ना हजारे के अनशन के समय लोकसभा बुलाई गई तो दादा ने सेंस ऑफ हाउस की रणनीति बनाई और कहा कि लोकपाल बिल पास करेंगे. सदन की उस महत्वपूर्ण बैठक को मुख्यतय: प्रणब मुखर्जी ने ही संभाला. पहली बार या तो सरकार ने लोकसभा की बात यानी सेंस ऑफ हाउस को नहीं माना या लोकसभा ने देश की जनता के साथ धोखाधड़ी की, अपने ही सेंस को एक्शन में ट्रांसलेट नहीं किया. अजीब चीज़ यह कि जो स्टैंडिग कमेटी लोकपाल को हैंडिल कर रही थी, उसके चेयरमैन अभिषेक मनु सिंघवी एक महिला को जज बनाने की सुपारी लेते हुए कमेटी से बाहर हो गए. उन्होंने इस्ती़फा दे दिया. इस उठापटक में प्रणब मुखर्जी का राजनीतिक कौशल दिखाई देता है. आर्थिक मामलों में उनकी पहल बहुत छोटी और भ्रमित यानी कन्फ्यूज्ड दिखाई देती है. लेकिन यह देश का सौभाग्य है कि वित्त मंत्रालय से प्रणब मुखर्जी को मुक्ति मिल गई. अब प्रणब मुखर्जी देश की तंदुरुस्ती के ऊपर नज़र रखेंगे. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनके जाते ही यह बयान दिया कि आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए एनिमल स्पिरिट की ज़रूरत है. इस बयान का भाष्य अभी तक प्रधानमंत्री की तऱफ से नहीं आया है. हम उस भाष्य की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

Wednesday, May 9, 2012

स्वामी रामदेव जी

स्वामी रामदेव जी के फंडे पर काम करके 30 करोड नौकरियों का जुगाड मात्र 10 साल में कर सकती है !! तो भारत सरकार आरक्षण के पीछे क्यों पड़ी हुई है।
पढ़िए.....और अगर पसंद आये तो शेयर करें.....!!

1. आज के दिन भारत की लाखों छोटी मोटी खिलौना बनाने वाली कम्पनियाँ इसलिय बंद हो गयी कि सरकार की तरफ से उनको न तो कोई आर्थिक मदद मिली न तकनीकी, यदि 100 का औसत पकडें तो करीब 2 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए।
2. भारत में साबुन से लेकर बनियान तक बनाने वाली 5000 विदेशी कंपनियों ने भारत का सब रोजगार (करीब 12 करोड़) विदेशो में भेज दिया है साथ ही साथ हर साल करीब 15 से 16 लाख करोड़ रुपये विदेश जा रहा है
3. इस पर तुर्रा यह की रोज रोज एफ़डीआई को नए नए क्षेत्र में खोला जा रहा है। यदि खुदरा में भी एफ़डीआई खोल दिया जाये तो भारत का 12 करोड़ रोजगार और भारत से बाहर विदेशो में पैदा होगा जिससे भारत के लोग और बेरोजगार होंगे।
4. स्वामी रामदेवजी ने कितने लोगो को स्थाई रोजगार अपने योग और आयुर्वेद के बल पर दिया है इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया है। इनके हर आरोग्य केंद्र पर 5 से 6 लोगों को नौकरी मिल रही है। एक एक जिले में 2 से 4 ऐसे केंद्र हैं और भारत में 628 जिले हैं। इसके बाद इनका उत्पाद बेचने वाले हर दूकान पर 2 से 4 लोगो को नौकरी मिली हुई है और यह आरोग्य केंद्र अब हर गाँव में खोलने की योजना है। तो सोचिये मात्र देशी चीजों से कितना रोजगार पैदा होगा। पतंजलि योगपीठ में भी शायद 8000 लोग नौकरी करते है।
यदि गाय- खेती-योग-आयुर्व ेद की चौकड़ी पर ध्यान दिया जाये तो इससे कम से कम 5 करोड रोजगार मात्र 3 साल में पैदा हो जायेगा तथा विदेशियों पर निर्भरता कम हो जायेगी।
5. जिस तरह से अमेरिका भारत को तेल को लेकर परेशानी में डाल रहा है, स्वामी रामदेव जी की चले तो गौ हत्या बंद करवाकर उसी गोबर गैस को सिलिंडर में भर कर गाड़ियों में सीएनजी जैसा उपयोग किया जाये और हर घर पर 200 वाट का सोलर पैनल दिखे।
6. वकीलों की जमात कांग्रेस सरकार अंग्रेजो की तरह ही 500 रुपये और 5 लाख करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार को बराबर मानकर पहले 500 रुपये वाले को जेल भेजती है बाद में जनता को आरक्षण और कुशवाहा जैसे मामलों में उलझाकर महत्वपूर्ण समय बिताकर इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन से जीत हासिल कर लेती है। कलमाड़ी, कनिमोझी जैसे सेकड़ों हजारों करोड़ के भ्रष्टाचारी देशद्रोही जमानत पा लेते हैं और 500 रूपये वाला जेल में सड़ रहा होता है। ये अब किसी भी हालत में खत्म होना चाहिए और राष्ट्रभक्तों की जमात पहले देश चलाये फिर दुनिया...अब भारत को ऐसे नेतृत्व की आवश्यकता है जो भारत के अंतिम व्यक्ति की सोचे, समान और मुफ्त शिक्षा व्यवस्था, चिकित्सा व्यवस्था उपलब्ध कराये, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाये और न्याय व्यवस्था भी सुधारे। वर्तमान में न्याय के नाम पर सिर्फ फैसले सुनाये जा रहे हैं और विदेशी न्याय व्यवस्था के कारण देश में अपराध बढ़ रहे हैं...!!
भारतीय बाजार मेँ बाबा रामदेव ने विदेशी कम्पनियोँ के कारोबार को कड़ी चुनौती देते हुए दैनिक जीवन मेँ प्रयोग होने वाली वस्तुओँ को खुले बाजार मेँ सस्ते दामोँ पर उतारा है ।स्वदेशी अपनाये, विदेशी भगायेँ , देश बचायेँ ।

Saturday, May 5, 2012

वेदों में पैगम्बर मुहम्मद- जाकिर नाइक




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This article is also available in English at http://agniveer.com/528/prophet-vedas/
अक्सर इस्लाम के कादियानी फिरके के बड़े बड़े मौलाना और आज की मुस्लिम दुनिया के जाने पहचाने डॉ जाकिर नाइक अपनी तकरीरों (भाषण) और किताबों में अक्सर ये कहते मिलते हैं कि हिन्दू किताबों जैसे वेद और पुराणों में मुहम्मद पैगम्बर के आने की भविष्यवाणी है. पाठक जाकिर नाइक की वेबसाइट पर यहाँ http://www.irf.net/index.php?option=com_content&view=article&id=201&Itemid=131
उनके दावे को पढ़ सकते हैं. हम इस लेख में यह जानने की कोशिश करेंगे कि वेद में पैगम्बर मुहम्मद के होने का यह दावा कितना पुख्ता है और कितना धोखे से मुसलमान बनाने की नापाक साजिश.
पुराण और दूसरी किताबों के दावे आगे के लेख में दिए जायेंगे. इससे पहले कि हम जाकिर नाइक के हवालों (प्रमाण) और मन्तक (तर्क) पर अपनी राय दें, हम कुछ अल्फाज़ (शब्द) वेद के बारे में कहेंगे.
आज तक की वेद की तारीख (इतिहास) में किसी वेद के मानने वाले ने वेद में मुहम्मद तो क्या किसी पैगम्बर का नाम नहीं पाया. जितने ऋषि (वे पाकदिल इंसान जिन्होंने वेद के रूहानी मतलब अपने पाक दिल में ईश्वर/अल्लाह की मदद से समझे और दुनिया में फैलाए) अब तक हुए, सब ने वेद में किसी किस्म की तारीख (इतिहास) होने से साफ़ इनकार किया है. इससे किसी आदमी के चर्चे वेद में मिलना नामुमकिन है. इसके उलट वेद तो हर जगह, हर वक़्त, और हर सूरत ए हाल (देश काल और परिस्थिति) में एक सा सबके लिए है. वेद में जरूर कुछ नाम मिलते हैं, जैसे कृष्ण. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वेद लाल कृष्ण आडवाणी की भविष्यवाणी करते हैं! इसका तो यही मतलब हुआ कि लोगों ने वेद में से कुछ अल्फाज़ (शब्द) अपने नाम के लिए चुन लिए. जैसे कोई मुहम्मद नाम का आदमी आज कहे कि कुरान तो उसके बारे में है और उस पर ही उतरती है तो इस पर उसके दिमाग पर अफ़सोस ही जताया जा सकता है!
खैर, इस लेख में हम यह बहस भी नहीं करेंगे कि वेद में इतिहास और भविष्यवाणी हैं कि नहीं! हम यहाँ यह साबित करेंगे कि अगर वेद में मुहम्मद पैगम्बर की कहानी सच्ची है तो वे एक पैगम्बर न होकर हज़ारों जिंदगियों को ख़ाक करने वाले एक दहशतगर्द थे, और साथ ही यह भी कि उनको गाय का मारा जाना गवारा नहीं था!
तो हमारा कहना जाकिर नाइक से ये है कि या तो वेद में मुहम्मद को मानना छोड़ दो और अगर नहीं तो मुहम्मद पैगम्बर को एक कातिल दहशतगर्द क़ुबूल करो जिसने मक्का के सारे इंसानों का कतल कर डाला, जैसा कि हम आगे दिखाएँगे! इतना ही नहीं, गाय का गोश्त सब मुसलमानों पर हराम ठहरता है क्योंकि पैगम्बर गाय को बचाने वाले थे और उसका मरना उनको गवारा नहीं था!
यह बात ऐसी ही है जैसे मुहम्मद को भविष्य पुराण में साबित करके जाकिर भाई ने मुहम्मद को एक भूत (ghost) और राक्षस (demon) जो कि शैतान के बराबर हैं, क़ुबूल किया है जो कि त्रिपुरासुर नाम के राक्षस का अगला जन्म था! इससे जाकिर भाई न सिर्फ मुहम्मद पैगम्बर को एक शैतान और राक्षस बताते हैं बल्कि तनासुख (पुनर्जन्म) में भी यकीन करते हैं!
अब हम नीचे जाकिर भाई की वेबसाइट पर दिए मन्त्रों के तर्जुमे (अनुवाद) देंगे और फिर उस पर उनका नुक्ता ए नजर (दृष्टिकोण) भी. और उसके नीचे हम उनकी सोच पर अपनी राय देंगे.

१. अथर्ववेद में मुहम्मद (सल्लo)

जाकिर भाई:
अथर्ववेद के २० वीं किताब के १२७ वें सूक्त के कुछ मन्त्र कुंताप सूक्त कहलाते हैं. कुंताप का मतलब होता है सब दुखों को दूर करने वाला. इसलिए जब इसको अरबी में तर्जुमा (अनुवाद) करते हैं तो इसका मतलब “इस्लाम” निकलता है.
अग्निवीर:
१. इस मन्तक (तर्क) के हिसाब से तो दुनिया की हर रूहानी (आध्यात्मिक) और हौंसला अफजाई करने वाली किताब का मतलब इस्लाम होगा!
२. इससे यह भी पता चलता है कि मुहम्मद पैगम्बर के चलाये हुए दीन और इसका अमन का पैगाम तो पहले ही वेदों की शक्ल में मौजूद था!
जाकिर भाई की यह बात काबिल ए तारीफ़ है कि उन्होंने इस्लाम की पैदाईश को वेदों से निकाल कर यह साबित कर दिया कि वेद ही असल में सब अच्छाइयों की जड़ हैं और सबको वेदों की तरफ लौटना चाहिए!
जाकिर भाई:
कुंताप का मतलब पेट में छुपे हुए पुर्जे (अंग) भी होता है. लगता है कि ये मंत्र कुंताप इसलिए कहलाते हैं कि इनके असली मतलब छिपे हुए थे और बाद में खुलने थे. कुंताप का एक और छिपा हुआ मतलब इस धरती की नाफ (नाभि, navel) यानी एकदम बीच की जगह से है. मक्का इस धरती की नाफ कही जाती है और ये सब जगहों की माँ है. बहुत सी आसमानी किताबों में मक्का का जिक्र उस घर की तरह हुआ है जिसमें अल्लाह ने सबसे पहले दुनिया को रूहानी (आध्यात्मिक) ताकत बख्शी. कुरान [३:९६] में आया है-
“मक्का पहला इबादत (पूजा) का घर है जो इंसानों के लिए मुक़र्रर किया गया जो सब वजूद (अस्तित्त्व) वालों के लिए खुशियों और हिदायतों से भरपूर है”
इसलिए कुंताप का मतलब मक्का है.
अग्निवीर:
१. जाकिर भाई से यह गुजारिश है कि किसी लुगात (शब्दकोष) में कुंताप का मतलब “पेट के छिपे हुए पुर्जे” दिखा दें!
२. अगर मान भी लिया जाए कि जाकिर भाई एम बी बी एस की खोज ठीक है तो इन “छिपे हुए पुर्जों” का नाफ (नाभि) से क्या ताल्लुक है? पेट में आंत, लीवर वगैरह तो छुपे होते हैं लेकिन केवल नाफ ही छुपी नहीं होती! तो फिर कुंताप =छुपा हुआ का मतलब नाफ=न छुपा हुआ कैसे होगा?
३. वैसे गोल धरती का ‘बीच’ उसके अन्दर होता है न कि उसकी सतह पर! तो जब मक्का भी सतह पर है तो वह गोल धरती की नाभि नहीं हो सकती, लेकिन चपटी (flat) धरती की जरूर हो सकती है! अब फैसला जाकिर भाई पर है कि चपटी धरती पर रहना है कि गोल धरती पर! वैसे बताते चलें कि इस्लाम धरती को गोल मानता ही नहीं. इसी वजह से पूरी कुरान में एक भी आयत ऐसी नहीं जिसमें धरती को गोल माना गया है!
(इस्लाम में मक्का को इतना ऊंचा दर्जा दिए जाने के पीछे कुछ तारीखी वजूहात (ऐतिहासिक कारण) हैं. इस्लाम के वजूद से पहले भी मक्का की पूजा होती थी और वो लोगों में इतनी गहराई से बैठी थी कि मुहम्मद साहब इसका विरोध करके अपना मजहब नहीं फैला सकते थे. यही वजह है कि सातवें आसमान पर बैठे अल्लाह की इबादत करने का दावा करने वाले मुसलमान भाई दिन में पांच बार काबा को सर झुकाते हैं और जिन्दगी में एक बार वहां जाकर उसके चक्कर काटने से जन्नतनशीं होने के सपने देखते हैं! काबा को चूमना, उसके चक्कर काटना वगैरह सब बातें मक्का के मुशरिक पहले से ही करते थे और मुहम्मद साहब को भी इसको जारी रखना पड़ा, भले ही ये बातें सच्चे अल्लाह की इबादत से दूर हैं.)
४. जाकिर भाई का मन्तक (तर्क) कहता है
कुंताप = पेट के छिपे हुए पुर्जे = नाफ (नाभि) = केंद्र = धरती का केंद्र = मक्का
इसलिए,
कुंताप = मक्का
तो अब जाकिर भाई के इस मन्तक से देखते हैं कि क्या होता है
जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन (शांति या peace ) = इस्लाम (जाकिर साहब खुद ही कहते हैं की इस्लाम का मतलब peace होता है, अपने कार्यक्रम का नाम भी Peace कान्फरेन्स रखा है)
इसलिए, जहर = इस्लाम

हम अपने दानिशमंद (बुद्धिमान) भाईयों और बहनों से पूछते हैं कि जाकिर भाई के मन्तक इस्लाम का रुतबा (स्तर) बढाने वाले हैं या उसका मजाक बनाने वाले?
जाकिर भाई:
कुछ लोगों ने इस कुंताप सूक्त के तर्जुमे (अनुवाद) किये हैं, जैसे एम ब्लूमफील्ड, प्रोफ़ेसर राल्फ ग्रिफिथ, पंडित राजाराम, पंडित खेम करण वगैरह.
अग्निवीर:
१. इन लोगों में से पहले दो तो ईसाई मजहब फैलाने के मकसद से किताबें लिखने वाले ईसाई थे. वेद के मामलों में ऐसे लोगों के मनमाने मतलब कोई मायने नहीं रखते.
२. वैसे इन लोगों ने कभी भी किसी मंत्र में मक्का या मुहम्मद या इनसे जुड़ी किसी बात का जिक्र तक नहीं किया! केवल एक लफ्ज़ “ऊँट” ही था जो इन लोगों के तर्जुमे और जाकिर भाई के तर्जुमे में एक सा है! जाकिर भाई ने सब मन्त्रों में जहाँ कहीं भी “ऊँट” आया है वहां जबरदस्ती मक्का और मुहम्मद को घसीट लिया है. यह अभी आगे साबित हो जाएगा. इस लेख को पढने वाले भाई बहन इन सब मन्त्रों पर ग्रिफिथ के तर्जुमे को http://www.sacred-texts.com/hin/av/av20127.htm यहाँ पर पढ़ सकते हैं और खुद फैसला कर सकते हैं कि जाकिर भाई सच बोल रहे हैं कि झूठ. हम नीचे पंडित खेम करण के किये तर्जुमे (अनुवाद) को दिखा कर आपसे पूछेंगे कि जाकिर भाई सच के उस्ताद हैं कि झूठ और मक्कारी के! आप इस तर्जुमे को http://www.aryasamajjamnagar.org/atharvaveda_v2/atharvaveda.htm यहाँ पढ़ सकते हैं.
जाकिर भाई:
कुंताप सूक्त मतलब अथर्ववेद [२०/१२७/१-१३] की ख़ास बातें हैं-
मन्त्र १. वह नाराशंस या जिसकी तारीफ़ की जाती है, मुहम्मद है. वह कौरम यानी अमन और उजड़े हुओं का राजकुमार, जो ६००९० दुश्मनों के बीच भी हिफाजत से है.
मन्त्र २. वह ऊँट पर सवार रहने वाला ऋषि है जिसका रथ (chariot) आसमानों को छूता है.
मन्त्र ३. वह मामह ऋषि है जिसको १०० सोने की अशर्फियाँ, १० हार, तीन सौ घोड़े और दस हज़ार गाय दी गयी हैं.
मन्त्र ४. ओ इज्जत देने वाले!
अग्निवीर:
असली तर्जुमा (पंडित खेम करण)
मन्त्र १. नाराशंस मतलब लोगों में तारीफ़ पाने वाला ही असली तारीफ़ को पायेगा. ओ कौरम (धरती पर राज करने वाले), हम बहुत तरह के तोहफे उन जांबाज (वीर) लोगों से पाते हैं जो दहशतगर्द कातिलों को ख़त्म करते हैं.
मन्त्र २,३. उसके रथ में तेज चलने वाले बहुत से ऊँट और ऊंटनी हैं. वह सौ अशर्फियों, दस हारों, तीन सौ घोड़ों और दस हजार गायों को मेहनतकशों (उद्यमी मनुष्यों) को देने वाला है.
मन्त्र ४. इस तरह से अच्छी बातें फैलाते रहो जैसे पंछी सदा पेड़ों से चिल्लाते रहते हैं.
अब तक जाकिर भाई और बाकी के तर्जुमाकारों में यह अंतर है कि जाकिर भाई ने कुछ लफ्ज़ अपनी तरफ से डालकर मुहम्मद पैगम्बर के वेदों में होने का रास्ता बनाया है जबकि औरों को जैसे यह खबर भी नहीं कि अरब में कोई तारीफ़ पाने लायक पैगम्बर अभी अभी होकर गुजरा है! हाँ एक बात जो दोनों तर्जुमों में एक सी है और वो है “ऊँट“!
अब देखें कि जाकिर भाई आगे क्या कहते हैं!
जाकिर भाई:
इस संस्कृत के लफ्ज़ नाराशंस का मतलब है “तारीफ पाया हुआ”, जो कि अरबी के लफ्ज़ “मुहम्मद” का तर्जुमा ही है.
अग्निवीर:
१. अरबी बिस्मिल्लाह यानी “बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम” को हिंदी में बदलने पर “दयानंद की जय” ऐसा मतलब निकलता है! इसका मतलब यह हुआ कि कुरान दयानंद की तारीफ़ से ही शुरू होती है! तो फिर हमारे मुसलमान भाइयों को कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए अगर कल हिन्दू यह कहने लगें कि कुरान में दयानंद के आने की भविष्यवाणी है!
२. और नाराशंस से मुहम्मद तक का सफ़र ऐसा ही है जैसा सफ़र जहर से इस्लाम तक था! जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन = इस्लाम
इसलिए, जहर = इस्लाम

जाकिर भाई:
संस्कृत के लफ्ज़ “कौरम” का मतलब है “अमन को फैलाने और बढाने वाला”. पैगम्बर मुहम्मद “अमन के राजकुमार” थे और उन्होंने इंसानियत और भाईचारे का ही पैगाम दिया. “कौरम” का मतलब उजड़ा हुआ भी होता है. मुहम्मद साहब भी मक्का से उजाड़े गए और मदीने में जाना पड़ा.
अग्निवीर:
१. “कौरम” का मतलब है “जो धरती पर अमन से राज करता है”. अब देखें, तारीख (इतिहास) गवाह है कि पैगम्बर मुहम्मद की जिंदगी खुद कितनी अमन चैन में गुजरी थी! कितनी अमन की लड़ाईयां उन्होंने लड़ीं, कैसे मक्का फतह किया और किस अमन का पैगाम कुरान में काफिरों के लिए दिया है, यह सब बताने की जरूरत नहीं!
२. वैसे जिस तरह मुहम्मद साहब मक्का से उजाड़े गए, उसी तरह कृष्ण जी भी मथुरा से उजाड़े गए और उन्हें द्वारिका में जाना पड़ा. कृष्ण के मायने भी “तारीफ किये गए” और “शांति दूत” मतलब अमन का पैगाम देने वाले हैं, फिर तो ये मन्त्र उन पर भी लागू होता है!
३. और कौरम से मुहम्मद तक का सफ़र भी ऐसा ही है जैसा सफ़र जहर से इस्लाम तक था! जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन = इस्लाम
इसलिए, जहर = इस्लाम

जाकिर भाई:
वह ६००९० दुश्मनों से बचाया जाएगा, जो कि मक्का की उस वक़्त की आबादी थी.
अग्निवीर:
हमारा सवाल है कि कौन से आबादी नापने की तकनीक से जाकिर भाई ने अब से चौदह सौ साल पहले की मक्का की आबादी खोज निकाली? कहीं यह कोई इल्हाम तो नहीं?
जाकिर भाई:
वह पैगम्बर ऊँट की सवारी करेगा. इससे यह जाहिर होता है कि यह कोई हिन्दुस्तानी ऋषि नहीं हो सकता, क्योंकि किसी ब्राह्मण को ऊँट की सवारी करना मनु के उसूलों के खिलाफ है. [मनुस्मृति ११/२०२]
अग्निवीर:
१. पंडित खेम करण के तर्जुमे के हिसाब से उस रथ में बीस ऊँट और ऊंटनी होंगे. अगर यह बात है तो कौन सी सीरत और हदीसों में लिखा है कि मुहम्मद साहब ऐसे किसी रथ पर सवार भी हुए थे? और क्या पूरी इंसानी तारीख में केवल पैगम्बर मुहम्मद ही वाहिद (इकलौते) इंसान थे जो ऊँट की सवारी करते थे? अगर नहीं तो आपको इस मन्त्र में सिर्फ उनका नाम ही क्यों सूझा?
२. मन्त्र एक राजा के बारे में है ना कि ब्राह्मण के बारे में. तो इसलिए मनु के उसूल इस मन्त्र पर घटते ही नहीं क्योंकि मनु का श्लोक ब्राह्मण के लिए ही है!
जाकिर भाई:
मन्त्र में ऋषि का नाम मामह है. हिन्दुस्तान में किसी ऋषि या पैगम्बर का नाम यह नहीं था…… कुछ संस्कृत की किताबें इस पैगम्बर का नाम मोहम्मद बताती हैं…..असल में इससे मिलता जुलता लफ्ज़ और मतलब तो पैगम्बर मुहम्मद पर ही घटता है.
अग्निवीर:
१. मन्त्र में लफ्ज़ “मामहे” है न कि “मामह”! जाकिर भाई ने किस किताब में इसका मतलब मुहम्मद या मोहम्मद देखा यह बात बड़े पते की है क्योंकि-
मन्त्र में “मामहे” लफ्ज़ एक क्रिया (verb) है ना कि कोई संज्ञा/आदमी (noun)! इस पूरे मन्त्र में केवल यही एक क्रिया (verb) है और कोई नहीं! अगर इस लफ्ज़ “मामहे” से किसी आदमी का मतलब लेंगे तो पूरे मन्त्र का कोई तर्जुमा ही नहीं बन सकता क्योंकि फिर इस मन्त्र में कोई क्रिया (verb) ही नहीं बचेगी!
२. और भी, यह क्रिया (verb) दो से ज्यादा लोगों के लिए आई है (बहुवचन), किसी एक आदमी के लिए नहीं! तो इस तरह इस लफ्ज़ से एक आदमी को लेना नामुमकिन है!
जाकिर भाई:
मन्त्र में जो सौ अशर्फियों की बात है, वो मुहम्मद पैगम्बर के साथियों और शुरू के ईमान लाने वालों के लिए है जिस वक़्त मक्का में हालात ठीक नहीं थे….
अग्निवीर:
१. यह एक और मौजजा (चमत्कार) ही समझना चाहिए कि अचानक सोने की अशर्फियाँ मोमिनों में तब्दील हो गयीं! लेकिन जाकिर भाई इस मौजजे का जिक्र कुरान में तो नहीं है, तो क्या अब आप पर भी इल्हाम …..? अल्लाह इमान सलामत रखे!
२. किसी इस्लामी किताब में सहाबा और शुरू के ईमान वालों की गिनती सौ तक नहीं गयी! कुछ सीरत चालीस तक ही बताती हैं. देखें http://www.religionfacts.com/islam/history/prophet.htm
जाकिर भाई:
दस हारों का मतलब यहाँ १० सहाबाओं से है. ये वे हैं जिनको खुद पैगम्बर ने यह खुश खबरी सुनाई कि वे सब जन्नत में दाखिल होंगे-अबू बकर, उमर, उथमान, अली, तल्हा, जुबैर, अब्दुर रहमान इब्न आउफ, साद बिन अबी वकास, साद बिन जैद, और उबैदा…
अग्निवीर:
१. वही मौजजा! गले के हार = सहाबा
२. वैसे ये १० गले के हार मूसा के दस उसूल (Ten Commandments) क्यों न माने जाएँ?
३. यहाँ रुक कर हम अपनी मुसलमान माताओं और बहनों से एक बात कहेंगे. ऊपर दिए गए दस लोगों में से एक भी औरत नहीं है, जिसकी जन्नत जाने की खबर मुहम्मद ने अपन मुहँ से सुनाई थी. आप सोच लें की आपकी इज्जत इस्लाम में कितनी है. हमें इस पर और कुछ नहीं कहना.
जाकिर भाई:
संस्कृत के अल्फाज़ गो का मतलब है लड़ाई के लिए जाना. गाय भी “गो” कही जाती है और वह लड़ाई और अमन दोनों की निशानी है. मन्त्र में दस हज़ार गायों से मुराद असल में मुहम्मद के उन दस हज़ार साथियों से है जो फ़तेह मक्का में उनके साथ थे जो कि दुनिया की पहली ऐसी फ़तेह (जीत) थी जिसमें कोई खून नहीं बहा. जहाँ ये दस हज़ार साथी गाय की तरह ही अच्छी आदत वाले और प्यारे थे वहीँ दूसरी तरफ ये ताकतवर और भयानक थे जैसा कि कुरान के सूरा फतह में आया है कि “जो मुहम्मद के साथ हैं वे काफिरों के खिलाफ ताकतवर हैं, लेकिन आपस में एक दूसरे का ख्याल करने वाले हैं” [कुरान ४८:२९]
अग्निवीर:
१. संस्कृत के कौन से उसूल से गो का मतलब “लड़ाई पर जाना” निकलता है? कहीं जाकिर भाई अंग्रेजी के “go” से तो जाने का मतलब नहीं निकाल रहे? वैसे संस्कृत में गो लफ्ज़ के कई मायने हैं जैसे गाय, धरती, घूमने वाली चीज वगैरह. लेकिन इस मन्त्र में गो का मतलब गाय ही है क्योंकि यहाँ बात लेने देने की है.
गाय का दान करना वैदिक धर्म का बहुत पुराना रिवाज है जो आज भी काफी चलता है. जितने भी वैदिक धर्म के बड़े लोग हुए, वे सब गाय और बाकी जानवरों की हिफाजत करने के लिए जाने जाते थे. यहाँ तक कि गाय वैदिक सभ्यता के रीढ़ की हड्डी समझी जाती है. ईश्वर बहुत जल्द वह दिन दिखाए कि कोई दहशतगर्द कातिल चाहे अल्लाह के नाम पे और चाहे देवी के नाम पे फिर कभी किसी मासूम के गले न चीर सके.
२. खैर, बात यह है कि वेद में हर जगह सब जानवरों की और ख़ास तौर से गाय की हिफाज़त करना राजा और लोगों पर जरूरी बताया गया है. जाकिर भाई के हिसाब से भी गाय मुहम्मद के साथियों की तरह प्यार करने लायक और हिफाज़त करने लायक है. लेकिन मुहम्मद और उनपर ईमान लाने वाले मुसलमान तो गाय के सबसे बड़े मारने वाले लोग हैं. ईद पर गाय काटना बहुत सवाब (पुण्य) देने वाला काम समझा जाता है. तो बात यह है कि अगर दस हजार गायों से मुहम्मद के साथियों से मुराद है तो मुहम्मद या कोई और मुसलमान गाय को नहीं मारते. पर ऐसा नहीं है. यह इस बात की दलील है कि जाकिर भाई की दस हज़ार गाय वाली बात भी मन घड़ंत, संस्कृत के इल्म से बेखबर, और मन्तक पर खारिज हो जाने वाली है.
३. जाकिर भाई के हिसाब से इस मन्त्र में आने वाले लफ्ज़ “गो” का मतलब लड़ाई की निशानी, अमन की निशानी, और लड़ाई के लिए जाना है! यानी एक ही वक़्त में यह लफ्ज़ noun भी है और verb भी! जाकिर भाई इस नए इल्म के खोजकार ठहरते हैं और इस लिए उनको बहुत मुबारकबाद!
जाकिर भाई:
इस मन्त्र में लफ्ज़ “रेभ” आया है, जिसका मतलब है तारीफ़ करने वाला और इसका अरबी में तर्जुमा करने पर “अहमद” बनता है जो मुहम्मद (सल्लo) का ही दूसरा नाम है.
अग्निवीर:
१. और रेभ से मुहम्मद तक का भी सफ़र ऐसा ही है जैसा सफ़र जहर से इस्लाम तक था! जहर = मौत = पूरा आराम = अमन चैन = इस्लाम
इसलिए, जहर = इस्लाम
२. इसी तरह- बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम = दयानंद की जय
और क्या कहें इस उल जलूल तर्क पर!
जाकिर भाई:
अथर्ववेद [२०/२१/६]- “ओ सच्चे लोगों के स्वामी! ……जब तुम दस हजार दुश्मनों से बिना लड़ाई किये जीते….”
यह मन्त्र इस्लाम की तारीख की जानी मानी लड़ाई, अहजाब की लड़ाई का जिक्र करता है जो मुहम्मद के जीतेजी ही लड़ी गयी थी. इसमें पैगम्बर बिना किसी लड़ाई के ही जीत गए थे जैसा की कुरान [३३:२२] में लिखा है.
इस मन्त्र में लफ्ज़ “करो” का मतलब है इबादत करने वाला, और जब इसका तर्जुमा अरबी में करते हैं तो यह अहमद बनता है जो मुहम्मद का दूसरा नाम है.
मन्त्र में आये दस हजार दुश्मन असल में मुहम्मद के दुश्मन थे और मुसलमान केवल तादात में तीन हजार थे. और मन्त्र के आखिरी लफ्ज़ “अप्रति नि भाष्या” के मायने हैं कि
दुश्मनों को बिना लड़ाई के ही हरा दिया गया.
अग्निवीर:
असली तर्जुमा (पंडित खेम करण): “ओ सच्चे लोगों को बचाने वाले! तुम उनसे खुश होते हो जो दुश्मनों को लड़ाई में अपनी जांबाजी और हौंसले से सबको खुश कर देते हैं. अपने बेहतरीन कामों से दस हज़ार दुश्मन बिना किसी तकलीफ के हरा दिए गए हैं.”
१. अगर ये मन्त्र अहज़ाब की लड़ाई की बात करता है तो इसमें पैगम्बर के लश्कर (सेना) की तादाद क्यों नहीं दी गयी?
२. मन्त्र में आये लफ्ज़ “दश सहस्र” वेदों में कई ठिकानों पर आये हैं, और इसके मायने बहुत बड़ी तादाद के हैं. कई बार ना गिने जा सकने वाले भी!
३. वैसे इस मन्त्र में “करो” जैसा कोई लफ्ज़ ही नहीं! नजदीक से नजदीक एक लफ्ज़ “कारवे” तो है पर इसका मतलब है “काम करने वाले के लिए” न कि “इबादत करने वाला” जैसा जाकिर भाई ने लिखा है! अब क्योंकि मुहम्मद का कोई नाम “काम करने वाले के लिए” नहीं है तो इस मन्त्र में उनके होने की सब दलील ख़ाक में मिल जाती हैं.
४. असल में यह मन्त्र ख़ास तौर से रूहानी (आध्यात्मिक) लड़ाई, जो हर वक़्त आदमी के जेहन में अच्छाई और बुराई के बीच चलती रहती है, के बारे में बताता है और इसे जीतने का हौंसला भी देता है. इसी वजह से बिना खून खराबे के लड़ाई जीतने की बात है. दूसरी तरफ यह सूक्त लड़ाई में अच्छे दांव पेच लगाकर बिना खून बहाए अपने दुश्मन को जीतने का रास्ता भी दिखाता है. पर इसमें, जैसा कि हम दिखा चुके हैं, कोई तारीखी वाकया (ऐतिहासिक घटना) शामिल नहीं है.
जाकिर भाई:
मक्का के मुशरिकों की हार की दास्ताँ अथर्ववेद [२०/२१/९] में इस तरह है- “ओ इंद्र! तुमने बीस राजाओं और ६००९९ आदमियों को अपने रथ के भयानक पहियों से हरा दिया है जो तारीफ़ किये हुए और अनाथ (मुहम्मद) से लड़ने आये थे”
मक्का की आबादी मुहम्मद की वापसी के वक़्त करीब साथ हज़ार थी. साथ ही मक्का में बहुत से कबीले और उनके सरदार थे. वो कुल मिलाकर करीब बीस सरदार थे जो पूरी मक्का पर हुकूमत करते थे. “अबन्धु” मतलब बेसहारा जो कि तारीफ़ किये हुओं में से है. मुहम्मद ने अल्लाह की मदद से अपने दुश्मनों पर फतह पायी.
अग्निवीर:
१. जाकिर भाई क्या किसी सीरत या हदीस से ये ६०००० आबादी वाली बात बताने की जहमत गवारा करेंगे? या फिर जैसा हमने पहले कहा कि क्या जाकिर भाई पर भी इल्हाम …….! अल्लाह ईमान सलामत रखे!
२. इस मन्त्र का लफ्ज़ दर लफ्ज़ (शब्दशः) तर्जुमा यह है कि ६०००० से ज्यादा दुश्मन और उनके २० राजा भयंकर रथों के पहियों तले रौंद डाले गए. मतलब दुश्मनों के लश्कर में ६०००० सिपाही थे. इसका मतलब यह कि मक्का की पूरी आबादी (जवान, बूढ़े, बच्चे, औरत) सब ही उस लडाई में पहियों तले कुचल डाले गए! तो अगर इस मन्त्र में मुहम्मद है भी तो वह एक भयानक कातिल, जिसने बच्चों, औरतों, बूढों किसी को नहीं छोड़ा, साबित होता है. क्या अब भी कोई मुहम्मद और इस्लाम के अमन के पैगाम पर सवालिया निशान लगा सकता है?
३. असल में, मक्का की लड़ाई एक छोटी सी कबीलों की जंग थी जिसमें हज़ार के आस पास मक्का के और तीन सौ के आस पास मुहम्मद के मुजाहिदीन शामिल थे. तो इस लड़ाई में ६०००० की बात सोचना नामाकूल बात है.

२. ऋग्वेद में मुहम्मद (सल्लo)

जाकिर भाई:
इसी तरह की भविष्यवाणी ऋग्वेद (१/५३/९) में मिलती है.
संस्कृत लफ्ज़ जो यहाँ आया है वो है “सुश्रमा” जिसका मतलब है “तारीफ़ किये जाने के काबिल” जिसका अरबी तर्जुमा मुहम्मद ही है.
अग्निवीर:
इसका मतलब भी पिछले मन्त्र जैसा ही है यानी उससे भी मुहम्मद पूरी काबा की आबादी का कातिल ठहरता है.
२. मन्त्र में कहीं भी “सुश्रमा” नहीं आया!
३. एक लफ्ज़ “सुश्रवसा” जरूर है जिसका मतलब है “सुनने वाला” और “दोस्त”, जिसका इस मन्त्र में मुहम्मद से कोई ताल्लुक ही नहीं!

३. सामवेद में मुहम्मद (सल्लo)

जाकिर भाई:
पैगम्बर मुहम्मद सामवेद (२/६/८) में भी पाए जाते हैं. “अहमद ने अपने स्वामी से इल्हामी इल्म हासिल किया. मैंने उससे वैसा ही नूर (प्रकाश) हासिल किया जैसा कि सूरज से”. इससे पता चलता है कि
इस पैगम्बर का नाम अहमद है. कई तर्जुमाकारों (भाष्यकारों) ने इसे गलत समझा और इसे अहम् अत ही लिखा और इसका मतलब निकला “मैंने ही अपने पिता से असली इल्म हासिल किया है”.
पैगम्बर को इल्हामी इल्म हासिल हुआ, जो कि शरियत है.
ऋषि को इल्म हुआ मुहम्मद की शरियत से. कुरान [३४:२८] में लिखा है- “हमने तुझे भेजा है सबके लिए न कि किसी एक के लिए, उनको समझाने के लिए और चेतावनी देने के लिए, पर अधिकतर लोग समझते नहीं”
अग्निवीर:
कोई कुछ समझा क्या? पहले हम भी नहीं समझे थे! पर समझ कर अब इस पर लिख रहे हैं. हो सकता है आप हमारी राय देख कर जाकिर भाई की बातों को समझ सकें!
१. जाकिर भाई को पहले यह सीखना चाहिए कि वेदों के हवाले (reference) कैसे दिए जाते हैं. सामवेद के हवाले इस तरह नहीं दिए जाते. इसलिए जब उनको यह मन्त्र सही हवालों के साथ कहीं मिले तो हमारी नजर कर दें, हम इसका भी हल कर देंगे! हमने बहुत खोजा पर यह मंत्र हमे कहीं नहीं मिला.
२. एक बड़ा सवाल यहाँ यह है कि जब वेद अहमद, सहाबा, मुहम्मद के साथियों की तादाद, मक्का की आबादी, उसके सरदारों की गिनती वगैरह बिलकुल ठीक से बताते हैं तो फिर सीधा “मुहम्मद” नाम क्यों नहीं लेते? अल्लाह मियां ने इतनी अफरा तफरी क्यों मचा के रखी है? क्यों नहीं सीधे सीधे इकट्ठे एक ही जगह पर कुछ मन्त्रों में मुहम्मद का नाम और उसकी पूरी सीरत (जीवन चरित्र) डाल देता की काफिरों को यकीन हो जाता कि मुहम्मद ही असली पैगम्बर है और जन्नत की चाबी लिए हुए है?

कुछ आखिरी बातें!

१. क्या अल्लाह को अपने आखिरी रसूल का नाम नहीं पता था कि इशारों में लोगों को समझा रहा था कि ऊँट की सवारी करेगा और ६०००० लोगों को कुचल देगा, वगैरह?
२. अगर हजारों साल पहले ही अल्लाह ने वेद में यह लिख दिया था कि कुछ लोग कुचले जायेंगे और कुछ जन्नत में भेजे जायेंगे तो फिर उसने सबके लिए जन्नत ही जन्नत क्यों नही लिखी?
३. जब वेद की बातें एकदम मुहम्मद (सल्लo) की जिन्दगी से मेल खा रही हैं (जाकिर भाई कि नज़रों में!) तो फिर वेद को इल्हामी किताब मानने में क्या तकलीफ है?
४. अगर वेद इल्हामी है तो जाकिर भाई किताबों के नाम वेद से शुरू न करके तौरेत से क्यों शुरू करते हैं? और कुरान में वेद का नाम क्यों नहीं?
५. अगर वेद इल्हामी नहीं तो झूठी किताब से मुहम्मद और अल्लाह की मजाक उड़ाने की हिमाकत जाकिर भाई ने कैसे की और सब उलेमा इस पर खामोश क्यों हैं?
६. अब जब यह बात खुल गयी है कि वेद में मुहम्मद मानने की कीमत मुहम्मद को एक पूरी कौम का कातिल मानने की है तो क्या अब भी यह सौदा जाकिर भाई को क़ुबूल है?
७. वेदों में मुहम्मद का फलसफा असल में कादियानी मुल्लाओं का है. वैसे भी जाकिर भाई बिना बताये कादियानियों की किताबों से सामान लेकर अपनी किताबें बनाते हैं तो क्या कादियानियों पर उनका घर जैसा हक समझा जाये? अगर ऐसा है तो फिर जाकिर भाई ने आज तक ये राज हमसे क्यों छिपाए रखा कि वो एक कादियानी हैं?
आखिर में हमारी जाकिर भाई और उनके सब साथियों और चाहने वालों से यही गुजारिश है कि सब झूठी भविष्यवाणियों और पैगम्बरों को छोड़ कर अपने असली घर वेद के धर्म में आ जाएँ. जहाँ जन्नत/सुख की चाबी किसी मुहम्मद के पास नहीं पर एक ईश्वर के पास है. जहाँ तारीफ करने के काबिल केवल वही एक ईश्वर है न कि कोई पैगम्बर.
वह एक है, जो कि पूरी कायनात को संभाले रखता है, जो सब के अन्दर घुसा हुआ, सबके बाहर फैला हुआ, हाज़िर नाजिर, बिना जिस्म, सारी कुव्वतों का एक अकेला मालिक, कामिल, न कभी पैदा हुआ, न कभी मरेगा, सदा रहने वाला और सबका सहारा ईश्वर ही है. उसके अलावा और किसी की इबादत हम न करें. [यजुर्वेद]
This article is also available in English at http://agniveer.com/528/prophet-vedas/

पैगम्बर मुहम्मद कल्कि अवतार नहीं - जाकिर नायक और स्वच्छता वाले सलीम मियां को जवाब



 

by Rakesh Singh (सृजन)

सबसे पहले ये बता दूं की ये लेख मैंने क्यूँ लिखा? हिंदी ब्लॉग जगत मैं डॉ. जाकिर के चेलों (स्वच्छता वाले सलीम खान) द्वारा लगभग हर सप्ताह एक दो ब्लॉग "पैगम्बर मुहम्मद ही कल्कि अवतार हैं" लिखते रहे हैं | हमने कई जवाब भी दिए पर वो कहाँ सुननेवाले ! गूगल पे हिंदी मैं सर्च करो तो वही स्वच्छता वाले (वास्तव मैं अस्वच्छ) सलीम खान ही सबसे आगे आते हैं और उसका कोई सही जवाब देता हुआ ब्लॉग नहीं मिला | इसलिए सोचा के झूठे प्रचार का जवाब देना ही चाहिए | मैं संस्कृत का ज्ञानी नहीं इसलिए संस्कृत शब्दों और श्लोकों के अर्थ के लिए उचित reference देने की कोशिश की है |

क्या पैगम्बर मुहम्मद कल्कि अवतार हैं ? उत्तर : नहीं, निम्न बिन्दुओं पे गौर करें :

* हिन्दू धर्म ग्रंथों मैं कलि युग का काल ४,३२,००० (चार लाख बत्तीस हज़ार वर्ष) बताया गया है | कलि युग के अंत मैं ही भगवान् स्वयेम कल्कि के रूप मैं पृथ्वी पे अवतार लैंगे (ref: भागवतम 2.7.३८ - http://srimadbhagavatam.com/2/7/38/en ) | कलि युग का आरम्भ लगभग 3102 BC माना गया है (ref : http://www.harekrsna.com/sun/features/04-09/features1345.htm) | अब तक कलि युग के लगभग पॉँच हज़ार वर्ष ही बीते हैं, कल्कि अवतार आने मैं अभी लाखों वर्ष बाकी हैं | क्या यहीं ये साबित नहीं हो जाता की मुहम्मद साहब कल्कि अवतार हैं ही नहीं !

* डॉ. जाकिर और अन्य मुस्लिम विचारक जिन हिन्दू धर्म ग्रंथों का सन्दर्भ दे रहे हैं, उन्ही ग्रंथों में राम, कृष्ण.... को साक्षात भगवन का अवतार बताया गया है | क्या हमारे मुसलमान भाई कल्कि अवतार से पहले की अवतारों (राम, कृष्ण....) को भगवान् मानते हैं ? ये प्रश्न जैसे ही पूछता हूँ इनके बड़े-बड़े विचारक बेशर्मी से कहते हैं, नहीं हम तो सिर्फ मुहम्मद साहब को ही अवतार मानते हैं और इससे पहले की सारे अवतार झूठे हैं | मतलब की आप हमारे मुहम्मद साहब को कल्कि अवतार मान कर इस्लाम कबुल कर लो, हम तो आपके अवतारों राम, कृष्ण ... को मानते भी नहीं !!! अब बताईये इस्लाम के बड़े-बड़े विचारकों को क्या कहा जाए ?

* भागवतम (12.2.१७ - http://srimadbhagavatam.com/12/2/17/en) कहता है : भगवान् विष्णु खुद कल्कि के रूप मैं धरती पे अवतार लेंगे | मतलब भगवान् विष्णु = कल्कि अवतार | पर डॉ. जाकिर और उनके चेले कहते हैं की मुहम्मद साहब तो पैगम्बर हैं, अल्लाह कोई और है | जबकी हिन्दू ग्रन्थ साफ़ कहता है : कल्कि अवतार कोई पैगम्बर नहीं बल्कि भगवान् विष्णु का अवतार होगा | एक कम बुद्धि वाला इंसान भी ये बात भली भांती समझता है, फिर डॉ. जाकिर और सलीम भाई जैसे इस्लाम जगत के बड़े विद्वानों ने क्यों नहीं समझा इसे अबतक? समझेंगे भी कैसे इनके पथ निर्देशक खुद ही गलत रास्ते पे जो दौड़ रहे हैं |

* कई जगहों पे वेदों का उदाहरण दे कर कहते हैं की वेदों मैं मुहम्मद साहब के बारे मैं फलां-फलां बातें बतायी गई है | वस्तुतः वेदों मैं कुल १,००,००० (एक लाख) ऋचाएं/मन्त्र थी , घटते घटते आज सिर्फ २०-२१ हजार ही उपलब्ध रह गई हैं | एक पढ़ा-लिखा इंसान (भले ही उसे कितनी भी अच्छी संस्कृत क्यों ना आती हो) इन २०-२१ हजार रिचाओं को अपने बल बूते नहीं समझ सकता, ये ग्यानी जन कह गए हैं | वेदों को समझने के लिए गुरु-शिष्य परम्परा आवाश्यक है | शायद यही कारण है की वेद कभी गीता, महाभारत, रामायण या अन्य पुराण की तरह आम जन के लिए सहज उपलब्ध भी नहीं हुआ और ना ही इसे ऐसे पढा जाता है | डॉ. जाकिर और उनके चेलों (स्वच्छता वाले सलीम मियां) से ये पूछना चाहता हूँ की आपने वेद के २०-२१,००० ऋचाएं बिना गुरु (कोई गुरु हो तो बताएं) के ही पढ़ कर समझ भी लिया वो भी ४-५ वर्षों मैं ही ? आपके कुरान मैं लगभग ६२३६ आयात ही हैं, तो आपने कुरान से कई गुना ज्यादा समय वेद पढने मैं लगाया , वाह क्या बात है ? अब जबकी मुस्लिम विद्वान् हिन्दू ग्रन्थ पढने मैं ज्यादा समय देते हैं तो कोई पागल हिन्दू ही इनके कुरान को पढ़ेगा, क्यूँ ?

* वेद के किसी भी मन्त्र मैं मुहम्मद शब्द का उल्लेख तक नहीं है, फिर भी बड़े बेशर्मी से ये कहते हैं नराशंस शब्द का अर्थ मुहम्मद और अहमद है | नराशंस शब्द का वास्तविक अर्थ जानने के लिए youtube लिंक देख सकते हैं : http://www.youtube.com/watch?v=AHOv-v-EfkE | जाकिर और उनके चेलों (सलीम खान) के हिसाब से संस्कृत के बड़े बड़े पडित - ज्ञानी किसी को संस्कृत नहीं आती, सबसे बड़े ज्ञाता तो सलीम मियां और जाकिर नायक हैं !
* पैगम्बर मुहम्मद पे भविष्य पुराण क्या कहता है जानने के लिए गूगल मैं search करें, अंग्रेजी मैं ढेर सारी सामग्री मिल जायेगी | bhavishyapuran नाम से (शायद) एक ब्लॉग भी है जहाँ इसपर सामग्री उपलब्ध है |

स्वच्छता वाले सलीम भाई के गुरु डॉ. ज़ाकिर नायक के बारे मैं कुछ मुसलमान भाई क्या राय रखते हैं, देखने के लिए youtube लिंक पे क्लिक करें youtube लिंक http://www.youtube.com/watch?v=JL52VoKUj78 - (NDTV रिपोर्ट )

http://raksingh.blogspot.in/2009/09/blog-post_03.html

कल्कि अवतार-मुहम्मद और हिन्दू धर्म ग्रन्थ

अल्लोपनिषद्- आइने में केवल सच ही सच

इतिहासकारों के अनुसार अल्लोपनिषद अकबर के समय में लिखा गया ग्रन्थ है जिसे जान बूझ कर अथर्ववेद के साथ जोड़ दिया गया. पवित्र वेदों में इस्लाम, मुहम्मद, कुरान का कोई जिक्र नहीं है. अकबर का जन्म 1542 AD में हुआ. मुहम्मद का जन्म 570 AD है. वेदों का समय काल 1500 BC से 600 BC है. यह काल निर्धारण वैज्ञानिक और प्रामाणिक है. अल्लोपनिषद की तरह कुछ अन्य क्षेपक (inserted text) भी मिलते हैं जो मुग़ल काल की देन हैं. भविष्य पुराण का समय 50BC से 1850 AD तक माना गया है. मुग़ल काल में इसमें इस्लाम और मुहम्मद से सम्बंधित श्लोक आदि जोड़े गए. अकबर का दीन इलाही (mixture of hindu and islam) भी इन क्षेपकों का प्रमुख कारण रहा है. भाषा इनमें अंतर स्पष्ट करती है. संस्कृत संसार की सबसे प्राचीन भाषा है. इसमें अल्ला शब्द है, जिसका अर्थ होता है पराशक्ति. कालांतर में यह शब्द अरबी भाषा में ले लिया गया. संस्कृत का आभार . हिंदू सृष्टि के कण कण में परमात्मा को मानते हैं, हिदुओं में ईश्वर की खोज हुई है अतः वृक्ष पूजन से लेकर सर्वशक्तिमान परमात्मा की खोज फिर उसको कण कण में देखना, सभी जड़ चेतन में उसे अनुभूत करना हिन्दू धर्म की विशेषता है. इसके अलावा उस अव्यक्त, अक्षर (shapeless,bodyless)को अनुभूत कर, समझकर उससे प्रेम करना उसके कोई भी मूर्त रूप (विग्रह} का पूजन बड़ी उच्च सोच का परिणाम है. सब में ईश अनुभूति ज्ञान और चेतना के उच्च स्तर की बातें हैं जिन्हेँ पड़कर नहीं बल्कि अनुभूति द्वारा समझा जा सकता है. यह जीवन विकास के अति उच्च स्तर की सोच और समझ है.

हिंदू सब प्राणियों के कल्याण की कामना करता है. यही नहीं प्रतिदिन प्रातः ईश पूजा में वह कहता है.....

अंतरिक्ष में शान्ति हो वह तुम्हारे लिए अनुकूल हो वायु में शान्ति हो वह तुम्हारे लिए अनुकूल हो अग्नि में मैं शान्ति हो वह तुम्हारे लिए अनुकूल हो जल में शान्ति हो वह तुम्हारे लिए अनुकूल हो पृथ्वी में शान्ति हो वह तुम्हारे लिए अनुकूल हो

परमात्मा सब पर कृपा करें.

कई लेखक ,ब्लोगेर्स अल्लोपनिषद. इस्लाम, मोहम्मद, पैगम्बर आदि आदि नामों से हिन्दू धर्म के विषय में अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं. नाम दे रहे हैं भाई चारा. लिखने से पहले क्या लिख रहे हो जान लो. कृपया पड़े लिखों को कुतर्कों और अप्रमाणिक तथ्यों से गुमराह न करें. हिन्दू भी अपने धर्म ग्रंथों को पड़े. हिन्दू जानता है पौराणिक कहानी धर्म नहीं है, उसका सार धर्म है. वह कथा चाहे सत्य हो अथवा काल्पनिक, प्रतीकात्मक है. इसी प्रकार मूर्ती ईश्वर नहीं है, हमारा प्रेम उस मूर्ती, चित्र में प्राण प्रतिष्ठित करता है. उससे परमात्मा के प्रति भाव, प्रेम जागता है. वह हमारी आत्मा में समां जाता है. कर के देखो खुद समझ में आ जायेगा. यही मुसलमान भी समझें. जानो कण कण में भगवान. दूसरे के प्रति अपशब्द सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान का अपमान है. हिन्दुओं की धार्मिक सोच अन्य सोचों से कई हजार वर्ष आगे है. यही भविष्य की सोच होगी.


(इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेश पहुचाना नहीं अपितु डॉ. जाकिर और अन्य मुस्लिम भाईयों (स्वच्छ हिंदोस्ता वाले सलीम खान, और ना जाने कौन कौन ..) द्वारा कल्कि अवतार पे किये जा रहे झूठे प्रचारों से लोगों को अवगत करना है | )

more link :-

http://agniveer.com/2971/naikexposed-hi/

http://agniveer.com/479/prophet-puran/

http://agniveer.com/2932/muhammad-vedas-hi/

http://vedpuran.files.wordpress.com/2011/10/bavishya-puran.pdf

Sunday, January 22, 2012

!!!वंदे मातरम!!!

शिकायत मुल्लो से नहीं
शर्मशार तो चंद हिंदुओं ने किया हैं
नफरतो की आग जलाना आयत में उनके
गंदे विचारो के कुरान को
क्यों पाक हिंदुओ ने कहा है

शिकायत मुल्लो से नहीं
शर्मशार तो चंद हिंदुओं ने किया हैं
मालूम है सबको वो आबरू के लुटेरे है
कैसे करते हो बाते भाईचारे की
जो खुद के जने को भी लूटते हैं

शिकायत मुल्लो से नहीं
शर्मशार तो चंद हिंदुओं ने किया हैं
होती है रक्तरंजित ये भूमि बार बार
देते है अंजाम जाहिलो के औलाद
अहिंसा की बात कह के क्यों नपुंसकता दिखाते हो
मिटा देंगे नामोनिशान इन जेहादी दानवो का.
हो के हिंदु क्यों हमें साम्प्रदायिक कहते हो

शिकायत मुल्लो से नहीं
शर्मशार तो चंद हिंदुओं ने किया हैं
फिदरत है उनकी पीठ पर वार करने की
औरतो और मासुमो का ढाल रखते है
क्यो उन्हें बचाने के लिए हमसे आँखे मिलाते हो..
पीठ उन्हें दिखा कर कैसे बहादुरी की बात करते हो

शिकायत मुल्लो से नहीं
शर्मशार तो चंद हिंदुओं ने किया हैं

!!!जय श्री राम!!!
!!!वंदे मातरम!!!

Sunday, January 1, 2012

गाँधी का उन्मुक्त या नाटकीय सेक्स जीवन.??


गाँधी का उन्मुक्त या नाटकीय सेक्स जीवन-

भारत पर जबरन थोपे गये राष्ट्रपिता मोहनदास कर्मचन्द गाँधी के जीवन पर इंगलैण्ड के सुप्रसिद्ध इतिहासकार जेड ऐडम्स ने अपने पंद्रह वर्ष के लम्बे अध्ययन और गहन शोधों के आधार पर 288 पृष्ठ की एक किताब लिखी है। जिसे “Gandhi : Naked Ambition” नाम दिया गया है। जिसका हिन्दी अनुवाद किया जाये तो इसे-”गाँधी की नग्न महत्वाकांक्षानाम दिया जा सकता है। इस किताब को आधार बनाकर अनेक भारतीय लेखकों ने भी गाँधी पर लिखने का साहस किया है, बल्कि यह कहना अधिक उचित होगा कि उक्त किताब के बहाने गाँधी के यौन जीवन पर उंगली उठाने का साहस जुटाया है। गाँधी को यौन कुण्ठाओं से ग्रस्त बताने वाले उक्त लेखक की पुस्तक की आड में अनेक भारतीय लेखक स्वयं भी अपनी अनेकों प्रकार की दमित कुण्ठाओं को बाहर निकालने का प्रयास कर रहे हैं। मैं भी इनमें से एक हूँ और उक्त पुस्तक के बहाने मैं भी गाँधी पर थोडा खुलकर लिखने का खतरा उठा रहा हूँ। आशा करता हूँ कि सुधिपाठक बिना पूर्वाग्रह अपनी अभिव्यक्तियाँ देंगे।
उक्त पुस्तक में गाँधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों और इन प्रयोगों में शामिल स्त्रियों के संक्षिप्त उद्गारों के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि गाँधी ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के नाम पर 16 वर्ष की कमसिन लडकियों, युवतियों तथा अधेड भारतीय तथा विदेशी महिलाओं के साथ अन्तरंगता से संलिप्त थे। गाँधी स्वयं निर्वस्त्र होकर, इन स्त्रियों को नंगी होकर अपने साथ सोने एवं बन्द बाथरूम में अपने साथ नहाने को सहमत या विवश किया करते थे। गाँधी के आश्रम के कुछ लोगों ने इन गतिविधियों पर दबी जुबान में आपत्ति भी की थी, जिन्हें गाँधी एवं गाँधी के अनुयाईयों की असप्रसन्नता का शिकार होना पडा। यहाँ तक की गाँधी के समय के अनेक वरिष्ठ स्वतन्त्रता सैनानियों ने इसी कारण गाँधी से दूरियाँ बना ली थी और वे यदाकदा ही उनसे बहुत जरूरी होने पर, सार्वजनिक बैठकों या कार्यक्रमों में औपचारिक रूप से मिला करते थे। जिनमें सरदार वल्लभ भाई पटेल भी शामिल थे। मेरे पास जितनी जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार इस किताब में ऐसा काफी मसाला है, जिसे आज की जिज्ञासु युवा पीढी आठ सौ रुपये में खरीदकर पढना चाहेगी!
यद्यपि गाँधी के यौन जीवन पर उंगली उठाना आज के समय में उतना खतरनाक नहीं रहा है, जितना कि तीस वर्ष पहले हो सकता था। भारतीय राजनीति में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम के उदय के साथ-साथ गाँधी और काँग्रेस के बारे में बहुत कुछ आम जनता को ज्ञात हो चुका है। अतः वर्तमान में गाँधी पर लिखने में उतना खतरा नहीं है, बल्कि गाँधी पर लिखने में प्रचारित होने और माल कमाने का पूरा अवसर है। उक्त किताब के लेखक ने भी यही किया है। मात्र 288 पृष्ठ की पुस्तक की कीमत आठ सौ (800) रुपये देखकर कोई भी समझ सकता है कि किताब को लिखने के पीछे कमाई करना ही बडा लक्ष्य है।
मेरा मानना है कि आज की युवा और पौढ पीढी बहुत संजीदा, जागरूक है और सच्चाई को जानने को उत्सुक है। इस देश में गाँधी को बेनकाब करने वालों को जानने के साथ-साथ और गाँधी को बेनकाब होते हुए देखने वालों की अच्छी-खासी तादाद है। इसलिये किताब भी बिकेगी और वर्ड की बेस्ट सेलर बुक्स में भी शामिल हो सकती है। इसके बावजूद भी मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि गाँधी को चाहे कितना ही बेनकाब किया जाये, अभी वह समय नहीं आया है, जबकि गाँधी की मूर्तियों को तोडने के लिये सरकारी आदेश जारी किये जायें। लेकिन एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा, जबकि इस कथित ढोंगी महात्मा का सच इस देश की जनता के साथ-साथ इस देश की सरकार भी स्वीकारेगी! मुझे व्यक्तिगत रूप से गाँधी केउन्मुक्त या नाटकीय सेक्स जीवनयाब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बहाने सेक्स की तृप्तिको लेकर उतनी आपत्ति नहीं है, जितनी कि गाँधी द्वारा अनेक महिलाओं के सेक्स एवं पारिवारिक जीवन को बर्बाद करने को लेकर है और इससे भी अधिक आपत्तिजनक तो गाँधी को इस देश परमहात्मा एवं राष्ट्रपिताके रूप में थोपे जाने पर है।
जहाँ तक गाँधी या नेहरू या अन्य किसी भी ऐसे व्यक्ति के सेक्स जीवन को उजागर करने या सार्वजनिक रूप से उछालने की बात है, जो आज अपना पक्ष रखने के लिये दुनिया में जीवित नहीं है, ऐसा करना तो नैतिक रूप से उचित है और हीं कानूनी रूप से ऐसा करना न्यायसंगत! सेक्स किसी भी व्यक्ति के जीवन में नितान्त व्यक्तिगत और महत्वपूर्ण विषय है। जिसे तो उघाडा जाना चाहिये और हीं प्रचारित या प्रसारित किया जाना जरूरी है। उक्त पुस्तक के लेखक ने अपने शोध में गाँधी को दमित सेक्स कुण्ठाओं से ग्रस्त पाया है। यदि गुपचुप सेक्स करना कुण्ठाग्रस्त होना नहीं और ब्रह्मचर्य के प्रयोग के नाम पर अपनी मनपसन्द स्त्रियों के साथ यौन सुख पाना कुण्ठाग्रस्त होना है तो लेखक की बात से सहमत होने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये, लेकिन यह सच नहीं है। क्योंकि यौन विषयों पर हमारे देश में सार्वजनिक रूप से चर्चा करना भी अश्लीलता माना जाता है, लेकिन आज का युवा थोडी हिम्मत दिखाने का प्रयास कर रहा है। परन्तु इस देश का ढाँचा इस प्रकार से बनाया गया है या कालान्तर में ऐसा बन गया है कि सार्वजनिक रूप से समाज अपने ढाँचे से बाहर किसी को निकलने की आजादी नहीं देता। बेशक चोरी-छुपे आप कुछ भी करो।
इस सन्दर्भ में दक्षिण भारतीय फिल्मों की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री खुश्बू के बयान (विवाह पूर्व सुरक्षित सेक्स अनुचित नहीं) मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राधा-कृष्ण के बिना विवाह किये साथ रहने को लेकर की गयी टिप्पणी को पढकर अनेक लोगों ने स्वयं को प्रचारित करवाने के लिये या वास्तव में सुप्रीम कोर्ट को सबक सिखाने के लिये हंगामा किया था। . प्र. हाई कोर्ट में रिट भी दायर की गयी। लेकिन कौन नहीं जानता कि आज या बिगत मानव इतिहास में अपवादों को छोडकर मनचाहा और ताजगीभरा सेक्स पाना, हर उम्र के स्त्री और पुरुष की मनोकामना रही है। हाँ सेक्स के मार्ग में भटकन एवं फिसलन हमेशा रही है। जिसमें कभी कभी हमारे पूज्यनीय समझे जाने वाले ऋषियों से लेकर आज तक के युवा भटकते रहे हैं।
जहाँ तक मोहनदास कर्मचन्द गाँधी के यौन-जीवन पर सार्वजनिक चर्चा का सवाल है तो हम सब जानते हैं कि गाँधी एक अत्यन्त तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी और धर्म का लबादा ओढकर लोगों को मूर्ख बनाने में दक्ष चालाक किस्म के राजनीतिज्ञ थे। जिसने बडी आसानी से दस्तावेजों पर यह सिद्ध कर दिया कि अंग्रेजों की अदालत द्वारा सुनाई गयी फांसी की सजा से भगत सिंह एवं उसके साथियों को बचाने में उनका (गाँधी का) का भरसक प्रयास रहा, लेकिन इसके बावजूद भी भगत सिंह एवं उनके साथियों को नहीं बचाया जा सका।
जबकि सच्चाई सभी जानते हैं कि गाँधी के कारण ही आजाद भारत को भगत सिंह एवं सुभाष चन्द्र बोस जैसे सच्चे सपूतों की सेवाएँ नहीं मिल पायी। गाँधी को भगत सिंह एवं सुभाष चन्द्र बोस तथा इनके सहयोगी फूटी आँख नहीं सुहाते थे। ऐसे व्यक्तित्व के धनी मोहनदास कर्मचन्द के बारे में उक्त किताब लिखी गयी है। जिसके बारे में बहुत सारे लोग जानते हैं कि गाँधी कभी भी अपनी पत्नी के साथ यौन सम्बन्धों से सन्तुष्ट नहीं थे (अधिकतर भारतीयों की भी यही दशा है), इसलिये उसने एक ऐसा बुद्धिमतापूर्ण, किन्तु चालाकी भरा रास्ता खोज निकाला, जिस पर गाँधी के तत्कालीन समकक्षों में भी दबी जुबान तक में विरोध में आवाज उठाने की हिम्मत नहीं थी और जीवन पर्यन्त गाँधी ऐसा ही ढोंगी बना रहा।
आजादी के बाद भी गाँधी को ढोंगी कहने की हिम्मत जुटाने के बजाय, हमने स्वयं को ही ढोंगी बना लिया और गाँधी को इस देश केराष्ट्रपिताके रूप में थोप लिया। वैसे देखा जाये तो ठीक ही किया, क्योंकि इस देश के राष्ट्रपिता स्वामी विवेकानन्द या स्वामी दयानन्द सरस्वती तो हो नहीं सकते थे! क्योंकि जिस देश की संस्कृति ऋषियों की अवैध औलाद (वेदव्यास) की अवैध सन्तानों से (नियोग के बहाने) संचारित होकर महाभारत की गाथा को आज तक गर्व के साथ गाती और फिल्माती हो, उस देश की आधुनिक सन्तानों का सच्चा राष्ट्रपिता यौनेच्छाओं की खुलकर तृप्ति करने वाला मोहनदास कर्मचन्द गाँधी ही हो सकता था।
अन्त में उपरोक्त के अलावा तीन बातें और कहना चाहूँगा-
1. पहली गाँधी दमित सेक्स या यौन कुण्ठाओं से ग्रस्त नहीं था, बल्कि वह अन्त समय तक खुलकर यौनसुख भोगने वाला ऐसा नाटककार और मुखौटे पहने जीवन जीने वाला भोगी था, जिसने जीवनभर स्वयं की पत्नी या अपने परिवार की तनिक भी परवाह नहीं की और जिसने अपनी राजनैतिक इच्छा पूर्ति के लिये केवल इस राष्ट्र के टुकडे होना ही स्वीकार किया, बल्कि कूटनीतिक तरीके से ऐसी परिस्थितियाँ निर्मित कर दी कि भारत के टुकडे होकर ही रहें।
2. दूसरी बात जिसे बहुत कम लोग जानते हैं कि गाँधी केवल अंग्रेज सरकार एवं अंग्रेजी प्रशासन के अन्याय या मनमानियों के विरुद्ध ही अनशन (उपवास) नहीं करता था, बल्कि उसने इस देश के 70 प्रतिशत दबे-कुचले और दमित लोगों के मूलभूत और जीवन जीने के लिये जरूरी हकों को छीनने के लिये भी अनशन का सफल नाटक किया। जिसके दुष्परिणाम इस देश को सदियों तक भुगतने पडेंगे। गाँधी के इसी षडयन्त्र की अवैध सन्तान है-अजा, अजजा एवं अन्य पिछडा वर्ग को नौकरियों में एवं अजा अजजा को विधायिका में लुंजपुंज और कभी खत्म होने वाला आरक्षण।
3. अन्तिम और तीसरी बात-जहाँ तक भारत के इतिहास और वर्तमान को देख कर ईमानदारी से आकलन करने की बात है तो गाँधी से भी अधिक कामुक और यौन लालायित हर आम स्त्री-पुरुष होता है, लेकिन स्त्री को तो हमने अनेक प्रकार की बेडियों में जकड रखा है, जबकि आम साहसी पुरुष यौनसुख हेतु मिलने वाले अवसरों को भुनाने से कभी नहीं चूकता। चूँकि गाँधी, नेहरू, बिल क्लिण्टन या कृष्ण ऐसे बडे व्यक्तित्व हैं, जिनके निजी जीवन की अन्तरंग बातें भी गोपनीय नहीं रह पाती हैं। इसीलिये इन पर किताबें लिखी जायेंगी, बहसें होंगी, अदालतों में याचिकाएँ दायर होंगी और कुछ लोग सडकों पर आकर भी धमाल मचा सकते हैं, लेकिन इसमें कुछ भी अस्वाभाविक या अनहोनी बात नहीं है। यह सब प्राकृतिक है। किसी भी जीव का अध्ययन करके देखा जा सकता है-अनेक मादाओं के झुण्ड में कोई एक शेर, एक बन्दर, एक सियार, एक चीता, एक सांड, एक भैंसा, एक बकरा या एक कुत्ता पाया जाता है और सन्तति का क्रम बिना व्यवधान चलता रहता है। यह अलग बात है कि आधुनिक नारी भी पुरुष की ही भांति प्रत्येक यौन-संसर्ग के दौरान यौनचर्मोत्कर्स की उत्कट लालसा की अवास्तविक और असम्भव कल्पनाओं में विचरण करने लगी है। दुष्परिणामस्वरूप ऐसी राह भटकी महिलाओं में से लाखों को हिस्टीरया जैसी अनेक मानसिक बीमारियों से पीडित होकर, घुट-घुट कर मरते हुए देखा जा सकता है।
लेकिन सवाल उठता है कि ऐसा क्यों? इस सवाल पर विस्तार से लिखने की जरूरत है, लेकिन संक्षेप में इतना ही लिखना चाहूँगा कि सेक्स दो टांगों के बीच का खेल नहीं(जैसा कि समझा जाता है) , बल्कि यह स्वस्थ मनुष्य के दो कानों के बीच (दिमांग) का खेल है। यदि और भी सरलता से कहा जाये तो शारीरक रूप से पूरी तरह स्वस्थ स्त्री-पुरुष के बीच सेक्स 20 प्रतिशत शारीरिक और 80 प्रतिशत मानसिक होने पर ही सुख या चर्मोत्कर्स या चर्मबिन्दु पर पहुँचने का आनन्द लिया जा सकता है। अन्यथा तो सेक्स पुरुषों की क्षणिक कामाग्नि के उबाल को शान्त करने का साधन और स्त्रियों की कामाग्नि प्रज्वलित करने वाली एक आवश्यक बुराई के सिवा कुछ भी नहीं है।
साभार- डा पुरुषोत्तम मीणा.
सत्य तक पहुँचने के लिए कुछ इन्टरनेट लिंक दे रहा हूँ-
http://www.straightdope.com/columns/read/2521/did-mahatma-gandhi-sleep-with-virgins
गांधी सम-लैंगिक था-..??
http://www.jpost.com/ArtsAndCulture/Books/Article.aspx?id=214133