अब आते है भारत-तिब्बत और चीन के एतिहासिक संबंधो पर
1. तिब्बत मध्य एशिया के पूर्व में और चीन के दक्षिण में स्थित की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के उत्तर-मध्य-स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है| इस तिब्बत राज्य का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7 वी शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध-धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ।
2. १६४२ में पांचवें दलाई लामा गवांग लोजांग ग्यात्सो ने तिब्बत पर आध्यात्मिक व लौकिक दोनों दृष्टियों से अधिकार कर लिया। उन्होंने तिब्बती सरकार की वर्तमान शासन प्रणाली की स्थापना की जिसे गांदेन फोड्रांग'' कहा जाता है। समूचे तिब्बत के शासक बनने के बाद उन्होंने चीन की ओर रूख किया और चीन से मांग की, कि वह उनकी संप्रभुता को मान्यता दे।
3. मिंग बादशाह ने दलाई लामा को
एक स्वतंत्र और बराबरी का शासक स्वीकार किया। इस बात के प्रमाण हैं कि वह
दलाई लामा से मिलने के लिए अपनी राजधानी से बाहर आए और उन्होंने शहर को
घेरने वाली दीवार के ऊपर से एक ढाल वाले मार्ग का निर्माण किया ताकि दलाई
लामा बिना प्रवेश द्वार तक गये सीधे पीकिंग में प्रवेश कर सकें।
4. चीन के शासक ने दलाई लामा को न केवल एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्वीकार किया, बल्कि उन्हें पृथ्वी पर एक देवता के रूप में भी माना। इसके बदले में दलाई लामा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मंगोलों को इस बात के लिए राजी किया कि वह चीन पर मिंग-शासक का आधिपत्य स्वीकार करे। इसके परिणाम स्वरूप पुरोहित-यजमान संबंध का विकास हुआ| जिसने तिब्बत, चीन व मंगोलिया के संबंधों में एक नये वातावरण का निर्माण किया। एक और महत्वपूर्ण घटना थी पांचवे दलाई लामा का यह बयान की उनके निजी शिक्षकों में से एक, पहले पंचेन लामा की श्रेणी को जारी रखा जाये।
4. चीन के शासक ने दलाई लामा को न केवल एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्वीकार किया, बल्कि उन्हें पृथ्वी पर एक देवता के रूप में भी माना। इसके बदले में दलाई लामा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मंगोलों को इस बात के लिए राजी किया कि वह चीन पर मिंग-शासक का आधिपत्य स्वीकार करे। इसके परिणाम स्वरूप पुरोहित-यजमान संबंध का विकास हुआ| जिसने तिब्बत, चीन व मंगोलिया के संबंधों में एक नये वातावरण का निर्माण किया। एक और महत्वपूर्ण घटना थी पांचवे दलाई लामा का यह बयान की उनके निजी शिक्षकों में से एक, पहले पंचेन लामा की श्रेणी को जारी रखा जाये।
5. मंगोलों का अंत 1720 ई0 में
चीन के माँचू प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने,
जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त
करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के
गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके।
6. परिणाम स्वरूप 19 वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। तिब्बत ने दक्शिण मे नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पडा और नेपाल के गोरखाओ ने तिब्बत को हमेसा हराया। नेपाल और तिब्बत कि सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली-रुपये हरजाना भरना पडा। इससे परेशान होकर तिब्बत ने नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से मदद मागी| चीन के मदद से तिब्बत ने नेपाल से छुट्कारा तो पा लिया लेकिन चीन ने ही 1906-7 ई0 में तिब्बत पर अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की| लेकिन चीन तिब्बत को 1912 ई0 तब ही अधीन रख सका| चीन में मांचू-शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
6. परिणाम स्वरूप 19 वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। तिब्बत ने दक्शिण मे नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पडा और नेपाल के गोरखाओ ने तिब्बत को हमेसा हराया। नेपाल और तिब्बत कि सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली-रुपये हरजाना भरना पडा। इससे परेशान होकर तिब्बत ने नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से मदद मागी| चीन के मदद से तिब्बत ने नेपाल से छुट्कारा तो पा लिया लेकिन चीन ने ही 1906-7 ई0 में तिब्बत पर अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की| लेकिन चीन तिब्बत को 1912 ई0 तब ही अधीन रख सका| चीन में मांचू-शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
7. सन् 1913-14
में चीन-भारत(तत्कालीन इंडो-ब्रिटिस सरकार) एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की
बैठक शिमला में हुई| जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी भागों में विभाजित
कर दिया गया: (पूर्वी भाग जिसमें वर्तमान चीन के सिंघाई एवं सिकांग प्रांत
हैं। इसे (Inner Tibet) अंतार्वर्ती तिब्बत कहा गया।(2) पश्चिमी भाग जो
बौद्ध धमानुयाई शासक लामा के हाथ में रहा। इसे बाह्य तिब्बत (Outer Tibet)
कहा गया)
सन् 1933 ई0 में 13 वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी धेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित-पालित 14 वें दलाई लामा ने 1940 ई0 में शासन भार सँभाला।
सन् 1933 ई0 में 13 वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी धेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित-पालित 14 वें दलाई लामा ने 1940 ई0 में शासन भार सँभाला।
8. 1950 ई0 में जब ये सार्वभौम
सत्ता में आए तो पंछेण-लामा के चुनाव में दोनों देशों में शक्तिप्रदर्शन की
नौबत तक आ गई एवं चीन को तिब्बत पर आक्रमण करने का बहाना मिल गया। और चीन
ने तिब्बत पर चढ़ाई शुरू कर दी| ९ सितम्बर १९५१ को हजारो चीनी सेनिको ने
तिब्बत की राजधानी "ल्हासा" विजय मार्च किया और एक संधि के तहत तिब्बत को
साम्यवादी चीन के अधीन राज्य घोषित कर दिया गया।
अथार्त ९ सितम्बर १९५१ को चीन ने संगीनों के बल पर तिब्बत पर अधिकार जमा लिया तब भारतवर्ष को आजाद हुए ४ वर्ष हो चुके थे लेकिन भारत-सरकार सम्पूर्ण मामले में केवल मूक दर्शक बनी रही|
9. इसके बाद चीन द्वारा तिब्बत में भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी| जो क्रमश: 1956 एवं 1959 ई0 में जोरों से भड़क उठी। परतुं बल प्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई-लामा नेपाल के रास्ते होकर भारत पहुचे जो वर्तमान में भी भारतवर्ष की ही शरण में है और अन्तराष्ट्रीय मंचो से तिब्बत की स्वतंत्रता की आवाज उठाते रहते है| इसके पश्चात भी भारतवर्ष की सरकार तिब्बत पर चीन के अधिपत्य को मूक सहमति प्रदान कर कमजोर कूटनीति व विदेश-नीति का प्रदर्शन करती आ रही है|
अथार्त ९ सितम्बर १९५१ को चीन ने संगीनों के बल पर तिब्बत पर अधिकार जमा लिया तब भारतवर्ष को आजाद हुए ४ वर्ष हो चुके थे लेकिन भारत-सरकार सम्पूर्ण मामले में केवल मूक दर्शक बनी रही|
9. इसके बाद चीन द्वारा तिब्बत में भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी| जो क्रमश: 1956 एवं 1959 ई0 में जोरों से भड़क उठी। परतुं बल प्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई-लामा नेपाल के रास्ते होकर भारत पहुचे जो वर्तमान में भी भारतवर्ष की ही शरण में है और अन्तराष्ट्रीय मंचो से तिब्बत की स्वतंत्रता की आवाज उठाते रहते है| इसके पश्चात भी भारतवर्ष की सरकार तिब्बत पर चीन के अधिपत्य को मूक सहमति प्रदान कर कमजोर कूटनीति व विदेश-नीति का प्रदर्शन करती आ रही है|