Saturday, December 6, 2014

शक्तिशाली-पड़ोसी-चीन 2

अब आते है भारत-तिब्बत और चीन के एतिहासिक संबंधो पर

1. तिब्बत मध्य एशिया के पूर्व में और चीन के दक्षिण में स्थित की उच्च पर्वत श्रेणियों, कुनलुन एवं हिमालय के उत्तर-मध्य-स्थित 16000 फुट की ऊँचाई पर स्थित है| इस तिब्बत राज्य का ऐतिहासिक वृतांत लगभग 7 वी शताब्दी से मिलता है। 8वीं शताब्दी से ही यहाँ बौद्ध-धर्म का प्रचार प्रांरभ हुआ। 1013 ई0 में नेपाल से धर्मपाल तथा अन्य बौद्ध विद्वान् तिब्बत गए। 1042 ई0 में दीपंकर श्रीज्ञान अतिशा तिब्बत पहुँचे और बौद्ध धर्म का प्रचार किया। शाक्यवंशियों का शासनकाल 1207 ई0 में प्रांरभ हुआ।
2. १६४२ में पांचवें दलाई लामा गवांग लोजांग ग्यात्सो ने तिब्बत पर आध्यात्मिक व लौकिक दोनों दृष्टियों से अधिकार कर लिया। उन्होंने तिब्बती सरकार की वर्तमान शासन प्रणाली की स्थापना की जिसे गांदेन फोड्रांग'' कहा जाता है। समूचे तिब्बत के शासक बनने के बाद उन्होंने चीन की ओर रूख किया और चीन से मांग की, कि वह उनकी संप्रभुता को मान्यता दे।
 
3. मिंग बादशाह ने दलाई लामा को एक स्वतंत्र और बराबरी का शासक स्वीकार किया। इस बात के प्रमाण हैं कि वह दलाई लामा से मिलने के लिए अपनी राजधानी से बाहर आए और उन्होंने शहर को घेरने वाली दीवार के ऊपर से एक ढाल वाले मार्ग का निर्माण किया ताकि दलाई लामा बिना प्रवेश द्वार तक गये सीधे पीकिंग में प्रवेश कर सकें।
4. चीन के शासक ने दलाई लामा को न केवल एक स्वतंत्र शासक के रूप में स्वीकार किया, बल्कि उन्हें पृथ्वी पर एक देवता के रूप में भी माना। इसके बदले में दलाई लामा ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मंगोलों को इस बात के लिए राजी किया कि वह चीन पर मिंग-शासक का आधिपत्य स्वीकार करे। इसके परिणाम स्वरूप पुरोहित-यजमान संबंध का विकास हुआ| जिसने तिब्बत, चीन व मंगोलिया के संबंधों में एक नये वातावरण का निर्माण किया। एक और महत्वपूर्ण घटना थी पांचवे दलाई लामा का यह बयान की उनके निजी शिक्षकों में से एक, पहले पंचेन लामा की श्रेणी को जारी रखा जाये।
5. मंगोलों का अंत 1720 ई0 में चीन के माँचू प्रशासन द्वारा हुआ। तत्कालीन साम्राज्यवादी अंग्रेंजों ने, जो दक्षिण पूर्व एशिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफलता प्राप्त करते जा रहे थे, यहाँ भी अपनी सत्ता स्थापित करनी चाही, पर 1788-1792 ई0 के गुरखों के युद्ध के कारण उनके पैर यहाँ नहीं जम सके।
6. परिणाम स्वरूप 19 वीं शताब्दी तक तिब्बत ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थिर रखी। अंग्रेंजों ने अपनी व्यापारिक चौकियों की स्थापना के लिये कई असफल प्रयत्न किया। तिब्बत ने दक्शिण मे नेपाल से भी कई बार युद्ध करना पडा और नेपाल के गोरखाओ ने तिब्बत को हमेसा हराया। नेपाल और तिब्बत कि सन्धि के मुताबिक तिब्बत ने हर साल नेपाल को ५००० नेपाली-रुपये हरजाना भरना पडा। इससे परेशान होकर तिब्बत ने नेपाल से युद्ध करने के लिये चीन से मदद मागी| चीन के मदद से तिब्बत ने नेपाल से छुट्कारा तो पा लिया लेकिन चीन ने ही 1906-7 ई0 में तिब्बत पर अपना अधिकार जमा लिया और याटुंग ग्याड्से एवं गरटोक में अपनी चौकियाँ स्थापित की| लेकिन चीन तिब्बत को 1912 ई0 तब ही अधीन रख सका| चीन में मांचू-शासन अंत होने के साथ तिब्बत ने अपने को पुन: स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
7. सन् 1913-14 में चीन-भारत(तत्कालीन इंडो-ब्रिटिस सरकार) एवं तिब्बत के प्रतिनिधियों की बैठक शिमला में हुई| जिसमें इस विशाल पठारी राज्य को भी भागों में विभाजित कर दिया गया: (पूर्वी भाग जिसमें वर्तमान चीन के सिंघाई एवं सिकांग प्रांत हैं। इसे (Inner Tibet) अंतार्वर्ती तिब्बत कहा गया।(2) पश्चिमी भाग जो बौद्ध धमानुयाई शासक लामा के हाथ में रहा। इसे बाह्य तिब्बत (Outer Tibet) कहा गया)
सन् 1933 ई0 में 13 वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी धेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित-पालित 14 वें दलाई लामा ने 1940 ई0 में शासन भार सँभाला।
8. 1950 ई0 में जब ये सार्वभौम सत्ता में आए तो पंछेण-लामा के चुनाव में दोनों देशों में शक्तिप्रदर्शन की नौबत तक आ गई एवं चीन को तिब्बत पर आक्रमण करने का बहाना मिल गया। और चीन ने तिब्बत पर चढ़ाई शुरू कर दी| ९ सितम्बर १९५१ को हजारो चीनी सेनिको ने तिब्बत की राजधानी "ल्हासा" विजय मार्च किया और एक संधि के तहत तिब्बत को साम्यवादी चीन के अधीन राज्य घोषित कर दिया गया।
अथार्त ९ सितम्बर १९५१ को चीन ने संगीनों के बल पर तिब्बत पर अधिकार जमा लिया तब भारतवर्ष को आजाद हुए ४ वर्ष हो चुके थे लेकिन भारत-सरकार सम्पूर्ण मामले में केवल मूक दर्शक बनी रही|

9. इसके बाद चीन द्वारा तिब्बत में भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी| जो क्रमश: 1956 एवं 1959 ई0 में जोरों से भड़क उठी। परतुं बल प्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई-लामा नेपाल के रास्ते होकर भारत पहुचे जो वर्तमान में भी भारतवर्ष की ही शरण में है और अन्तराष्ट्रीय मंचो से तिब्बत की स्वतंत्रता की आवाज उठाते रहते है| इसके पश्चात भी भारतवर्ष की सरकार तिब्बत पर चीन के अधिपत्य को मूक सहमति प्रदान कर कमजोर कूटनीति व विदेश-नीति का प्रदर्शन करती आ रही है|
    

शक्तिशाली-पड़ोसी-चीन

चीन भारतवर्ष का एक ताकतवर पड़ोसी ही नही प्राचीन काल से सांस्कृतिक सम्बन्ध रखने वाला देश भी है इस देख की संस्कृति भी भारतवर्ष के सामान ही अति-प्राचीनकाल से सम्बन्ध रखती है| तिब्बत को जितने के बाद से ही चीन व भारतवर्ष की सीमाए आपसे में लम्बी दूरी के साथ मिलती है जिसके चलते दोनों देशो के बीच गहरे सीमा-विवाद भी है| दोनों देश १९६२ में चीन द्वारा हमले के कारण युद्ध भी लड़ चुके है|
इस सूत्र का उद्देश चीन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी पाना और उस पर चीन का सही विश्लेषण करना है| आज हम चीन के इतने करीबी पड़ोसी होने और उससे एक युद्ध लड़ने बाद भी इतना अधिक नही जानते है जितना सात समुन्द्र पार अमेरिका व ब्रिटेन के बारे जानते है या फिर अरब देशो के बारे में|
अब विश्व-परिद्रश्य बदल चुका है चीन महाशक्ति बनने जा रहा है लेकिन उसकी नजदिकिया हमारे परम्परागत दुश्मन पाकिस्तान से बढ़ना भी हमारे देश के लिए भावी ही नही वर्त्तमान में भी खतरा बनती जा रही है|

किसी भी देश के विस्तार के पिच्छे वहा की आदिकाल से स्थापित जातिगत व साप्रदायिक संस्कृति विशेषरूप से उत्तरदायी होती है| उनकी संख्या व परम्पराए उसके (उस देश के) विस्तार में प्रमुख भूमिका निभाती है|
यहाँ सबसे पहले चीन के निवासियों की जातियों व सम्प्रदायों के बारे में बताना चाहूँगा:-
हान-जाति:-
चीन में हान-जाति की जनसंख्या चीन-देश की कुल जनसंख्या का लगभग 92 प्रतिशत है और अन्य अल्पसंख्यक जातियों की कुल जनसंख्या देश का मात्र 8 प्रतिशत है। हानजाति की तुलना में अन्य 55 जातियों की जनसंख्या कम होने के कारण उन्हें अल्पसंख्यक-जातियाँ कहलाती है। अल्पसंख्यक-जातियाँ मुख्यतौर पर उत्तर-पश्चिमी, दक्षिण-पश्चिमी, तथा उत्तर-पूर्व-चीन में रहती हैं।
इस ८% में निम्नलिखित ५५ जातिया आती है ये ५५ जातिया बोध-धम्म, इस्लाम, ईसाई व अन्य बोध मिश्रित-स्थानीय धम्म (रिलीजन्स) को मानती है|
१. मंगोल जाति, २.ह्वी जाति, ३.तिब्बती जाति,४.उइगुर जाति, ५.म्याओ जाति, ६.यी जाति, ७.ज्वांग जाति, ९.बुयी जाति, १०.कोरियाई जाति , ११.मान जाति, १२.तोंग जाति, १३.याओ जाति, १४.पाई जाति, १५.थुचा जाति, १६.हानि जाति, १७.कज़ाख जाति, १८.ताई जाति, १९.ली जाति, २०.सुली जाति, २१.वा जाति, २२.श जाति, २३.गोशान जाति, २४.लाहू जाति, २५.श्वी जाति, २५.तुंग श्यांग जाति, २६.नाशी जाति, २७.चिंगफ जाति, २८.अर्कज़ जाति, २९.थु जाति, दावर ३०.जाति, मुलाओ जाति, ३१.छ्यांग जाति, ३२.बुलांग जाति, ३३.सारा जाति, ३४.माओनान जाति, ३५.गलाओ जाति, ३६.शिबो जाति, ३७.आछांग जाति, ३८.फुमि जाति, ३९.ताज़िक जाति, ४०.नू जाति, ४१.उज़बेक जाति, ४२.रूसी जाति, ४३.अवनक जाति, ४४.दआंग जाति, ४५.पाओआन जाति, ४६.य्वुगु जाति, ४७.चिंग जाति, ४८.तातार जाति, तु४९.लुंग जाति, ५०.अलुनछुंग जाति, ५१.हच जाति, ५२.मनबा जाति, ५३.लोबा जाति और ५५.चिनो जाति हैं|
इसके अतिरिक्त चीन के अंदरुनी व तिब्बत के पहाडी उच्चे पहाडी क्षेत्रो में कुच्छ ऐसे आदि-कालीन आदिम-जातिये समूह भी पाए जाते है जिनकी आधिकारिकत्तोर पर पहचान नही है लेकिन इनकी संख्या नही के बराबर है|
मान-जाति

चीन में हान-जाति की जनसंख्या १ अरब २० लाख के करीब है| इस जाति के बाद चीन की सबसे प्राचीन सशक्त जाति मान-जाति है:-
मान-जाति का चीन की बहुसंख्यक जाति हान-जाति के ५००० वर्ष पुराने इतिहास की अपेक्षा इस मान-जाति का चीन इतिहास भी 2000 वर्ष पुराना है| उत्तर पूर्व चीन के ल्याओनिन प्रांत में मान-जाति की जनसंख्या सब से ज्यादा है। मान-जाति के लोग मान-भाषा का प्रयोग करते थे लेकिन वर्त्तमान में जाति के लोग चीन सम्पूर्ण में फैले हुए हैं हान-जाति के साथ रहने और घनिष्ठ संपर्क होने के कारण अब मान-जाति के लोग आमतौर पर हान-भाषा का प्रयोग करते हैं, सिर्फ़ दूरदराज कुछ गांवों में कुछ वृद्ध लोग मान-भाषा बोलते हैं।
वर्तमान में मान-जाति की कुल जनसंख्या का सही पता लगाना असंभव है लेकिन एक अनुमान के अनुसार इस जाति की जनसंख्या ५० लाख से अधिक है| प्राचीनकाल मान-जाति के लोग उत्तर पूर्वी चीन के छांगपाइ पर्वत के उत्तर में स्थित हेलुंगच्यांग नदी के मध्य व निचले भाग तथा उसुरी नदी के विशाल घाटी क्षेत्र में रहते थे। 12वीं शताब्दी में तत्कालीन न्युजन नामक मान-जाति के लोगों ने चिन राजवंश की स्थापना की। वर्ष 1583 में नुरहाछी ने न्युजन के विभिन्न कबीलाओं का एकीकरण किया और आठ लीग वाली शासन व्यवस्था की स्थापना की और मान भाषा का सृजन किया।

यह जाति भी हान-जाति की भाति बहुदेववादी-धर्म में विश्वास करती है व दुसरे धर्मो का आदर भी करती है| चीन के इतिहास के अनुसार मान-जाति के लोगों ने चीन के एकिकरण, प्रादेशिक भूमि के विस्तार, आर्थिक व सांस्कृतिक विकास के लिए भारी योगदान किया था।
 
ज्वांग-जाति

चीन की हान-जाति के पश्चात ज्वांग-जाति जनसंख्या के आधार पर दूसरी बड़ी जाति है| अथार्त अल्पसंख्यक जातियों में ज्वांग-जाति की जनसंख्या सब से ज्यादा है, ज्वांग जाति के लोग मुख्यतौर पर दक्षिणी चीन के क्वांगशी ज्वांग-जातीय स्वायत्त-प्रदेश में रहते हैं।
ज्वांग-जाति की भाषा हान-तिब्बती भाषा श्रेणी में शामिल होती है। चीन के दक्षिण भाग में बसी ज्वांग-जाति का इतिहास बहुत पुराना है। दसियों हज़ार वर्ष पहले ज्वांगग-जाति के पूर्वज दक्षिणी चीन में रहते थे।
वर्ष 1958 में क्वांगशी ज्वांग-जातीय-स्वायत्त प्रदेश की स्थापना हुई। ज्वांग-जाति कृषि प्रधान जाति है, जो मुख्यतः धान और मकई का उत्पादन करती है।
ज्वांग जाति के लोग गीत गाने के शौकिन होते हैं, इसलिए ज्वांग-जातीय क्षेत्र को गीतों का सागर माना जाता है। ज्वांग-जाति की परम्परागत शिल्पकला कृति ज्वांग चिन यानी ज्वांग जाति का रेशमी बुनाई की चीजें बहुत सुन्दर व चमकीली होती हैं।
प्राचीन काल में ज्वांग-जाति प्रकृति व बहुदेवता में आस्था रखती थी। थांग और सुंग राजवंशों के बाद बौद्ध-धर्म और ताओ-धर्म क्रमशः ज्वांग-जातीय क्षेत्र में प्रचलित हो गए,
आधूनिक समय में इसाई और केथोलिक आदि पश्चिमी धर्म भी ज्वाग-जातीय क्षेत्र में स्वीकृत हुए; लेकिन उन का प्रभाव बहुत ही कम पाया जाता है।
 
म्याओ जाति

चीन में म्याओ-जाति की जनसंख्या लगभग 89 लाख से अधिक है, जो मुख्यतौर पर चीन के क्वोचो, युन्नान, सछ्वान, क्वांग शी, हुनान, हुपेई और क्वांगतुंग आदि प्रांतों में निवास करती है। चीन के यह प्रांत भारतवर्ष के पूर्व के पड़ोसी देश मानम्यार(बर्मा), वियतनाम, लोअस के उत्तर-पूर्व में स्थित है|

म्याओ-जाति अपनी म्याओ-भाषा का प्रयोग करती है, म्याओ-भाषा; हान-तिब्बती भाषा श्रेणी का एक अंग है। अतीत में म्याओ-जाति की अपनी एकीकृत लिपी नहीं थी। वर्ष 1956 में म्याओ-जाति ने अपनी चार बोलियों के आधार पर लाटिन अक्षरों की अपनी लिपी बनायी, तभी से इस जाति की अपनी लिपी बन गई है।
म्याओ-जाति चीन में पुराने इतिहास वाली जातियों में से एक है। चार हज़ार वर्ष पूर्व के ऐतिहासिक ग्रंथों में इस जाति का उल्लेख उपलब्ध है। किवदंती में चीनी राष्ट्र के पूर्वज ह्वांगती और यानती के साथ कभी लड़ने और कभी सहयोग करने वाले छीयो नामक कबीलाई राजा म्याओ-जाति के पूर्वक माना जाता है।
युद्ध, प्राकृतिक विपत्ति, रोग आदि के कारण म्याओ-जाति निरंतर अपने जन्म-स्थल से स्थानांतरित हुआ करती थी, इस से म्याओ-जाति के लोग व्यापक क्षेत्रों में बस गए और भिन्न-भिन्न स्थानों की म्याओ-जाति की शाखाओं में भिन्न-भिन्न बोलियां, वस्त्र तथा रीति-रिवाज़ उत्पन्न हुई हैं।
विभिन्न क्षेत्रों में फैली हुई म्याओ-जाति अपने-अपने विशेष नाम से भी संबोधित होती है। उदाहरण के लिए नाना प्रकार के वस्त्र पहनने की वजह से उन्हें बड़ी-स्कर्ट वाली म्याओ-जाति, छोटी-स्कर्ट वाली म्याओ-जाति, लाल-रंग वाली म्याओ -जाति और काला-रंग वाली म्याओ-जाति संबोधित किया जाता है।
म्याओ-जाति मुख्यतौर पर आदि-धर्म (अपने आदिवासी पूर्वजो की परम्परागत सांस्कृतिक धर्म) में विश्वास करती है और धान, मकई, तिलहन, और चीनी जड़ी-बुटियों की खेती करती है।
 
मंगोल जाति
मंगोल-जाति की जनसंख्या 58 लाख है मंगोल-जाति मंगोली-भाषा का प्रयोग करती है, यह भाषा-आर्ताई भाषा व्यवस्था का एक अंग है| मंगोल-जाति मुख्यतौर पर चीन के भीतरी मंगोलिया-स्वायत्त-प्रदेश और शिन्च्यांग उईगुर-स्यावात्त-प्रदेश, छिंगहाई, कानसू, हेलुंगच्यांग, चीलिन, तथा ल्याओनिंग आदि प्रांतों के मंगोलिया-जातीय-स्वायत्त प्रिफैक्चरों व कांऊटियों में बसी है। यह क्षेत्र चीन के उत्तर में स्थित है| इस क्षेत्र का अधिकाँश भाग "गोबी के रेगिस्थान" में आता है|
मंगोल का नाम सब से पहले थांग राजवंश में अस्तित्व में आया, उसी समय यह सिर्फ़ मंगोल के विभिन्न कबीलों में से एक का नाम था। मंगोल कबीले का जन्म स्थल अर्गुना नदी के पूर्वी भाग में था और धीरे-धीरे पश्चिमी ओर आ बसा। विभिन्न कबीलों के बीच श्रम शक्तियों, पशुओं तथा संपत्ति की छिनाझपटी के लिए लड़ाई हुआ करती थी।
वर्ष 1206 में तामूचन को मंगोल का राजा खां बनाया गया, जो चंगेजखान के नाम से विश्वविख्यात रहा, उस ने मंगोल राज्य की स्थापना की। इसतरह उत्तर चीन में पहली बार एक शक्तिशाली, स्थिर व विकसित जाति--मंगोल जाति पैदा हुई। बाद में चंगेज खान ने मंगोल के विभिन्न कबीलों, यहां तक की चीन का एकिकरण किया और उस के पोता खुबले खान ने चीन के य्वान-राजवंश की स्थापना की।
चीन की मंगोल-जाति आमतौर पर लामा-धर्म में विश्वास करती है। इस मंगोल-जाति ने चीन के राजनीतिक, सैनिक, आर्थिक, वैज्ञानिक व तकनीक विकास, खगोल शास्त्र, कला साहित्य व सांसकृतिक, चिकित्सक प्रगति में भारी योगदान किया है।
 
यी जाति
यी-जाति की जनसंख्या 77 लाख से अधिक है, यह जाति भी मुख्यतः चीन के युन्नान, सछ्वान, क्वोचो और क्वांगशी आदि चार प्रांतों (भारतवर्ष के पूर्वी-पड़ोसी मानम्यार{बर्मा}, लाओस, वियतनाम के उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र में स्थित चीनी प्रान्तों) में बसी है। दो हज़ार वर्ष पहले उत्तर-चीन से आई तीछ्यांग-जाति के लोगों और दक्षिण में रहने वाले स्थानीय लोगों के साथ विलय हुआ, जिससे एक नयी जाति यी-जाति उत्पन्न हुई।

यी-जाति अपनी भाषी बोलती है। यी-भाषा हान-तिब्बती भाषा व्यवस्था का ही एक अंग है। हान-जाति के लोगों के साथ ज्यादा संपर्क करने वाले यी-जातीय लोगों को हान-भाषा भी आती है। यी-जाति चीन में जनसंख्या ज्यादा, आबाद क्षेत्रों के अधिक और लम्बा पुराना इतिहास होने वाली जातियों में से एक है।

यी-जाति की एक विशेषता है कि लम्बे समय तक यी-जाति में दास व्यवस्था लागू होती थी। वर्ष 1949 में नये चीन की स्थापना के बाद यी-जातीय क्षेत्र में लोकतांत्रिक सुधार किया गया और तभी से वहां की दास व्यवस्था को समाप्त किया गया।
पुराने समय में यी-जाति बहुदेव धर्म को मानती थी और छिंग-राजवंश में ताओ-धर्म यी-जाति में लोकप्रिय हुआ। 19वीं शताब्दी के अंत में कैथोलिक व क्रिश्चिन धर्म भी यी जाति में प्रवेश कर गए, लेकिन इनके अनुयायी बहुत ही कम पाए जाते हैं।
 
ह्वी जाति

ह्वी-जाति की जनसंख्या 98 लाख से अधिक है, जो मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी (जिनजियांग) चीन के "निंगशा" "ह्वी-जातीय स्वायत्त प्रदेश" में रहती है। चीन के अन्य क्षेत्रों में भी ह्वी-जाति के लोग बसे हुए हैं। ह्वी-जाति के लोग चीन के सभी नगरीय क्षेत्रो में फैले हुए हैं और चीन में सब से अधिक क्षेत्रों में फैली हुई अल्पसंख्यक जाति मानी जाती है। लम्बे अरसे में हान-जाति के साथ रहने के कारण ह्वी-जाति मुख्य तौर पर हान-भाषा का प्रयोग करती है और अन्य अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्रों में रहने वाले ह्वी-जाति के लोग उन्ही अल्पसंख्यक जातियों की भाषा भी बोलते हैं|

इस जाति के लोग इस्लाम के अनुयायी होने के कारण कुछ लोगों को अरबी व फ़ारसी भाषा भी आती हैं। ह्वी-जाति का इतिहास 7वीं शताब्दी से शुरू हुआ। उसी समय अरबी व फ़ारसी व्यपारी चीन में आये, वे मुख्यतः दक्षिण-पूर्वी चीन के क्वांगचो और छ्वानचो आदि क्षेत्रों में बसे थे। कोई सैकड़ों वर्षों के विकास के बाद ह्वी-जाति की उत्पति हुई| इस के अलावा 13वीं शताब्दी के शुरू में युद्ध की विपत्ति से बचने के लिए मध्य-एशिया, फ़ारस तथा अरब क्षेत्र के बहुत से लोग भाग कर चीन के उत्तर-पश्चिमी भाग में आ बसे। ये लोग विवाह और धर्म के माध्यम से चीन के हान-जाति, उइगुर-जाति तथा मंगोल-जाति के लोगों के साथ विलय हुए| धीरे धीरे एक नयी जाति--ह्वी जाति के रूप में विकसित हो गए।

ह्वी-जाति के लोग इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं, उन्होंने शहरों, कस्बों, यहां तक गांवों में भी मस्जिदों की स्थापना की और मस्जिद के आसपास रहने वाली यह विशेष आबादी बन गयी। ह्वी-जाति को खाने-पीने की अपनी विशेष आदत होती है। ह्वी-जातीय रेस्टरां व खाद्य-पदार्थ दुकानों के दरवाज़ों पर अपनी जाति के विशेष चिह्न मुस्लिम दुकान जैसा अक्षर या चित्र अंकित होता है, इन रेस्टरां और दुकान मुख्यतौर पर ह्वी-जाति के लोगोंं को सेवा प्रदान करते हैं। चीन में ह्वी-जाति का उच्च आर्थिक व इस्लामिक-सांस्कृतिक स्तर है|