समझोतों से नहीं कभी भी युद्ध टला करते हैं।

कायर जन ही इनसे खुद को स्वयं छला करते हैं।।

स्वतंत्रता -काल से आज तक की कालावधि में पकिस्तान और भारत के मध्य लगभग १७५ बार से भी अधिक वार्तालापों के दौर चल चुके हैं।
इस लम्बी वार्ताओं की कड़ी में उन सभी वार्तालापों के क्या परीणाम रहे,इसकी गहराई में जाने की अब कोई आवश्यकता नहीं रही है। इसको संछेप में सीधे सीधे ही यही कहा जा सकता है कि पकिस्तान से भारत लगभग १७५ बार ही कूटनीतिक युद्ध में पराजित हो चुकाहै।

१९४८ में पाकिस्तान के सैनिकों का कबाइलियों के वेश में आक्रमण रहा हो या १९६५ का युद्ध हो अथवा १९७१ या फिर १९९९ में कारगिल का युद्ध हो, भारत समर-छेत्र सैनिक विजय के प्राप्त करने के बावजूद भी बार बार हारा है। इन युद्दों में प्राप्त सैनिक विजय के लिए भारत का शासक वर्ग यदि अपनी पीठ थपथपाता है तो वह राष्ट्र को यह बतलाने का भी साहस करे कि विजय प्राप्त करने के उपरांत भी पाकिस्तान के किस भू-भाग को उसने भारत के अधिकृत किया है। अथवा कोन सा लाभ या लक्सय उसकी इन विजयों द्वारा प्राप्त किया गया। जबकि पाकिस्तान बार बार पराजित होकर भी हर युद्ध
के बाद भारत की अपेक्सा सदैव लाभ में ही रहा है।

भारत की कायर सत्ता एक बड़े युद्ध को टालने के लिए समय समय पर समझोतों और वार्ताओं का खेल खेलती है। जबकि शत्रु इस समय का सदुपयोग केवल अपनी सैनिक शक्ति को सुद्रढ़ करने में लगता
रहता है। आजादी के समय पाकिस्तान एक अत्यंत निर्बल राष्ट्र ही था । किन्तु वार्तालापों में भारत को बार बार उलझाकर उसने आज तक जो शक्ति अर्जित कर ली है , वह आज सबके सम्मुख है। आज पाकिस्तान भारत की और आँख तरेरता है, उसकी नितांत ऊपेक्छा करता है ,बार बार धमकी देता है,यही सब आज तक के भारतीय राजनेताओं की उन सभी वार्ताओं से प्राप्त की गयी उपलब्धियां हैं। और अब फिर से एक नयी उपलब्धी प्राप्त करने की भारत सरकार की पाकितान के साथ सचिव स्तर की बात चल पडी है । भारत का जन जन
इस वार्तालाप की अंतिम परिणति से परिचित है। वार्ता आरम्भ होने से पूर्व अपने आतंकवादियों से पुणे में कराये गए विस्फोटो के द्वारा पाकिस्तान ने इसकी जानकारी भारत को पहले ही दे दी है। बस अब तो केवल भारत सरकार ही इस वार्तालाप की ऊलाब्धि जान्ने के लिए उत्सुकता बची हुई है।

गत ६० वर्षों से इसी प्रकार से वार्ताओं का दोर चला आ रहा है । क्या भारत की सरकारे सचमुच इतनी भोली है कि वह केवल चर्चाओं के दोर चलाकर एक ऐसे शत्रु को नियंत्रण में लाना चाहती है,जिसके मन में कहीं गहरे तक भारत के प्रति केवल तीव्र घ्रणा ही बसी है।जिसका एक मात्र उदेश्य अपने जन्म काल से ही भारत को खंड खंड करके उसको मिटा देना या अपने अधिकार में करने का ही रहा है। केवल अपनी कायरता के कारण भारत उसके इस उद्देश्य की पूर्ती का ही एक परोक्स्त: माध्यम बनता चला आ रहा है ।


मेरा इन बातों का कहने का तात्पर्य यह भी नहीं है कि भारत को तुरंत ही पाकिस्तान पर आक्रमण कर देना चाहिए। किन्तु स्वाभिमान को बचाए रखने की सम्मति तो हर किसी भारतीय की भारत
सरकार को देने की जिम्मेदारी बनती ही है।पाकिस्तान भारत का कोई छिपा शत्रु नहीं है,जिसके शत्रु भाव से कोई परिचित न हो। वह हर पल बातों का जहर उगलकर भारत के प्रति
अपनी शत्रुता की घोषणा करता रहता है । तब क्या भारत को उसके प्रलाप का उत्तर इस प्रकार देना चाहिए,जिस प्रकार वह आज तक देता रहा है। अब पाकिस्तान को भारत की और से यह स्पष्ट चेतावनी मिलनी ही चाहिए कि यदि एक निश्चित समय सीमा तक यह अपने आतंकी कार्यों में सुधार नहीं करता तो फिर किसी भी सीमा तक जाने के लिए भारत की स्वतंत्रत है । इस वर्तमान वार्ता के दोर का तभी कुछ लाभ हो सकता है जब भारत पाकितान के सम्मुख आतंक समाप्त कर ने के लिए समय की एक निश्चित सीमा रेखा खीचे ।

भारत यदी इस प्रकार के चेतावनी देकर अपना दृढ रुख इस पर बनाए रखे तो विश्व बिरादरी भी उसका साथ देने के लिए विवश हो सकती है। भारत सरकार को यह
समझ लेने की आवश्यकता है कि कायर मनुष्य का , कायर समाज का और कायर राष्ट्र का कोई सहायक नहीं होता । अपनी भुजाओं के बल पर विशवास करके ही इतिहास की धारा मोड़ी जा सकती है। एक अवश्यम्भावी युद्ध को टालने का प्रयास सदा कायर सत्ता ही करती है। धरती के यथार्थ कठोर तल पर पैर न जमाये रखकर जो केवल दिवा- स्वप्नों में ही झूलता है,ऐसा भयग्रस्त राष्ट्र कभी अपना भविष्य नहीं बना सकता ।

और अंत में

उचित काल को राष्ट्र स्वयं ही बातों में खोता जो।
अपनी ही भावी पीढी का अपराधी होता वो॥